शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

बालक का नाम “दादू”

*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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विक्रम सं. १६०१ फाल्गुण शुक्ला अष्टमी बृहस्पतिवार छत्र योग पुष्य नक्षत्र के समय प्रात: काल साबरमति नदी में स्नान करके लोधीराम नागर नदी तट पर भजन कर रहे थे, उसी समय सनक मुनि जी ने अपनी योग शक्ति से एक नौका के आकार के समान छोटा सिंहासन रचकर तथा उस पर कमल पुष्पों के दल बिछा कर और अपना बालक रूप बनाकर तथा उस पर शयन करके नदी के प्रवाह में बहते हुये लोधीराम नागर के पास आये, तब लोधीराम को उक्त संत का वर स्मरण हो आया ।
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उसने उठकर सिंहासन को जा पकडा और बालक को गोद में ले लिया । फिर वह सिंहासन भी तत्काल ही अन्तर्धान हो गया । इससे लोधीराम को अति आश्‍चर्य हुआ और उसका विश्‍वास भी अति दृढ हो गया । फिर उसने बालक को घर ले जाकर अपनी पत्नी को दिया । उसी क्षण पत्नी के कुचों में दूध आ गया । बालक का भली भांतिपोषण किया गया । अपनी वस्तु अन्य को देने का स्वभाव देखकर माता पिता ने बालक का नाम “दादू” रख दिया ।
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बालक पांच वर्ष का हो गया तब पंडित गोविन्दराम के विद्यालय में शिक्षार्थ भेजने लगे । फिर ११ वर्ष की अवस्था में कांकरिया तालाब पर सांयकाल से कुछ पहले बालकों से खेलते समय भगवान् वृद्ध के रूप में प्रकट हुये । उन्हें देखकर अन्य सब बालक तो भयभीत होकर भाग गये किन्तु दादूजी उनके समीप आये और प्रणाम करके भेंट देने के लिये कुरते की जेब में हाथ डाला । एक पैसा मिला वही भेंट कर दिया ।
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वृद्ध(ब्रह्म) ने कहा - “इस पैसे की वही वस्तु ले आओ जो तुमको पहले मिल जाय ।” यह सुनकर दादूजी चल दिये । सर्व प्रथम पान की दूकान मिली । पान लेकर वृद्ध(ब्रह्म) के पास आये और पान उनके कर - कमलमें रख दिया । पान वृद्ध भगवान् ने खाया और दादूजी को भी प्रसाद दिया तथा दादूजी के सिर पर अपना हस्त भी रक्खा ।
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उसी समय दादूजी की दिव्य दृष्टि हो गई । वे भगवान् को पहचान गये । भगवान् ने उनको उपदेश दिया और कहा - “तुमको राजस्थान में जाकर इस उपदेश का प्रचार करना है । यह मुझ(ब्रह्म) की बतायी हुई पद्धति है । इस पद्धति से जो मेरी उपासना करेंगे वे मुझे ही प्राप्त होंगे ।” इतना कहकर वृद्ध(ब्रह्म) वहां ही अन्तर्धान हो गये ।
(क्रमशः)

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