शनिवार, 26 जुलाई 2025

नाद बिन्दु ले उधरै धरे

*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*॥आचार्य गरीबदासजी ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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उक्त साखियों का प्रवचन विस्तार से करके गरीबदासजीने बादशाह जहांगीर को समझाया फिर सत्संग का समय समाप्त हो जाने से बादशाह गरीबदासजी को प्रणाम करके अपने सामन्तों के साथ डेरे पर चला गया ।
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तीसरे दिन बादशाह गरीबदासजी से स्वीकृति मंगवाकर गरीबदासजी के पास गया । प्रणाम करके हाथ जोडकर सामने बैठ गया । फिर अवकाश देखकर बोला - भगवन् ! योगी लोग परमात्मा को किन साधनों से प्राप्त करते हैं, आज आप यही मुझे समझाने की कृपा करें । कारण आप समर्थ संत हैं । 
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परमयोगेश्‍वर दादूजी महाराज के द्वारा आपने सभी कुछ प्राप्त किया है । सभी अध्यात्म विषय आपको हाथ के आमले के समान संशय रहित ज्ञात है । आप प्राणी को अवश्य संशय बना देते हैं । अत: आप कृपा करके उक्त प्रश्‍न का उत्तर दें । बादशाह जहांगीर का उक्त प्रश्‍न सुनकर गरीबदासजी बोले -  
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नाद बिन्दु ले उधरै धरे, 
सहज योग हठ निग्रह नाहीं, पवन फेरि घट मांहिं भरे ॥टेक॥  
त्रिकुटी संधि ध्यान नहिं चूके भँवर गुफा क्यों भूले ।  
द्वै स्वर साध अनूप अराधे, सुख - सागर में झूले ॥१॥
इड़ा पिंगला साध सुषमन नारी, त्रिवेणी संग मिलावे । 
नौं से नवासी फेरि अपूठा, दशवें द्वारि समावे ॥२॥
अधै रु ऊधैं ताली लागे, चन्द्र सूर सम कीन्हा । 
अष्ट कमल दल मांहीं विगसै, ज्योति स्वरुपी चीन्हा ॥३॥  
रोम रोम धुनि उठी सहज में, परिचय प्राण सु पीवे ।
‘गरीबदासजी’ गुरु मुख ह्वै सूझी, जो जाणे सो जीवे ॥४॥ 
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उक्त पद का विस्तार पूर्वक प्रवचन करके गरीबदासजी ने बादशाह जहांगीर को योगियों के साधनों का परिचय दिया । बादशाह गरीबदासजी के प्रवचन से अति प्रभावित हुआ और सत्संग का समय समाप्त हो जाने से गरीबदासजी को प्रणाम करके अपने सामन्तों के साथ अपने डेरे पर चला गया । 
(क्रमशः)

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