शनिवार, 26 जुलाई 2025

१. गुरुदेव का अंग ३३/३६

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*१. गुरुदेव का अंग ३३/३६*
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सुन्दर सद्गुरु यों कह्या, शब्द सकल का मूल । 
सुरझै एक बिचार तें, उरझै शब्दस्थूल ॥३३॥
गुरुदेव ने तब हम को यही उपदेश किया कि यह एक 'राम' शब्द ही समस्त भवरोगों की एकमात्र औषध है । इस 'राम' शब्द के सतत चिन्तन, मनन(विचार) से ही सांसारिक स्थूल शब्दों की वास्तविकता (मिथ्यात्व) प्रकट हो पाती है ॥३३॥
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सुन्दर ताला शब्द का, सद्‌गुरु खोल्या आइ । 
भिन्न भिन संमुझाय करि, दीया अर्थ बताइ ॥३४॥
गुरुदेव ने भवसागर में डुबकी खाते हुए हमारे लिये उस गम्भीर 'राम' शब्द का ताला(गूढ अर्थ) खोलते हुए(पृथक् पृथक् स्पष्ट रूप से विवरण करते हुए) उस की विस्तृत यथार्थता बतायी ॥३४॥

गोरखधंधा वेद है, वचन कडी बहु भांति । 
सुन्दर उरझ्यौ जगत सब, बर्णाश्रम की पांति ॥३५॥
श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - यह वैदिक कर्मकाण्डपद्धति तो एक प्रकार का गोरखधन्धा* है, जिसमें विविध मन्त्र अनेक प्रकार के भौतिक सुख प्रदान की बात करते हैं । जब कि वे सभी सुख प्राणी को और अधिक जगञ्जञ्जाल(वर्णाश्रमपद्धति) में जकड़ देते हैं ॥३५॥
(*१. गोरखधंधा - १. लोहे के कुछ तार या कड़ियाँ; जो एक में जोड़ कर पुनः पृथक् न की जा सकें; २. गोरखपन्थी साधुओं के हाथ में रहने वाला डण्डा, जिसमें बहुत सी पेच वाली तथा जल्दी न सुलझने वाली कड़ियाँ जड़ी रहती है; ३. पहेली; ४. झमेला)
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क्रिया कर्म बहु बिधि कहे, बेद वचन विस्तार । 
सुन्दर समुझै कौंन बिधि, उरझि रह्यौ संसार ॥३६॥
उन वेद वचनों के पालन से वर्णाश्रम व्यवस्था में नाना प्रकार के क्रियाकलाप उद्धृत होने लगते हैं । उन सब क्रियाकलापों(कर्म-समूहों) को साधारण प्राणि कैसे यथार्थतः समझ सकता है । उसका परिणाम यह होता है कि सभी सांसारिक प्राणी उन्हीं उलझनों में उलझकर रह जाते हैं ॥३६॥
(क्रमशः)

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