*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*॥आचार्य गरीबदासजी ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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उस वर्षा से शीघ्र ही तालाब भर गया । बादशाह के तंबुओं में भी पानी भर गया और तंबू बहने लगे । तब बादशाह के सेवकों ने आकर बादशाह जहांगीर को कहा - तंबूओं में पानी भर गया है, पशु बहने लगे हैं । थोडी देर में तंबू भी अवश्य बह जायेंगे और मानव भी बह सकते हैं । वर्षा शीघ्र बन्द होनी चाहिये । अब यदि अधिक वर्षा होगी तो बहुत हानि हो सकती है ।
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बादशाह जहांगीर ने सेवकों की उक्त बातें सुनकर गरीबदासजी के चरणों में अपना मस्तक रखते हुये उनसे प्रार्थना की - भगवन् ! वर्षा शीघ्र ही बन्द नहीं हुई तो साथ के लोग डूब मरेंगे तथा तंबू आदि सब बह जायेंगे । आप तो सब को सुख देने वाले संत हैं और ईश्वर के स्वरुप ही हैं, आप ईश्वर से भिन्न नहीं है । अत: अवश्य हम लोगों की रक्षा कीजिये ।
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बादशाह जहांगीर की उक्त प्रार्थना सुनकर गरीबदपसजी ने वीणा तथा गाना बन्द कर दिया, फिर वर्षा भी बन्द हो गई । वर्षा बन्द होने पर सब को निश्चय हो गया कि अब हमारी रक्षा हो जायेगी । बादशाह जहांगीर के मन में गरीबदासजी का कोई चमत्कार देखने की भी इच्छा थी वह भी पूरी हो गई । उक्त वर्षा वर्षाना रूप चमत्कार को देख कर बादशाह जहांगीर गरीबदासजी से बहुत प्रभावित हो गया था ।
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इससे उस ने हाथ जोड कर गरीबदासजी से प्रार्थना की - भगवन् ! मैं सांभर और अजमेर आप की भेंट कर रहा हूँ, कृपा करके मेरी यह तुच्छ भेंट स्वीकार करिये । किन्तु गरीबदासजी अस्वीकार करते हुये बोले - तुम्हारे उक्त परगने ग्रहण करना रूप हमारा कार्य न तो प्रभु को प्रिय होगा और न हमारे लिये ही हितकर होगा ।
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प्रभु समझेंगे कि मेरा भरोसा छोड कर बादशाह से जीविका ग्रहण करना भक्त के लिये विध्न रूप ही है और यह हम को भी ज्ञात है कि परिग्रह का परिणाम भगवद्-भजन में निश्चय ही विध्न कारक होता है और भगवद् भजन में विध्न होना हमें भी अभीष्ट नहीं है तथा हमारे गुरुदेव दादूजी की भी ऐसी आज्ञा नहीं है । अत: हम तुम्हारे परगने नहीं लेंगे ।
(क्रमशः)
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