रविवार, 27 जुलाई 2025

१. गुरुदेव का अंग ४१/४४

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*१. गुरुदेव का अंग ४१/४४*
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सुन्दर सद्‌गुरु शब्द तें, सारे सब बिधि काज । 
अपना करि निर्वाहिया, बांह गहे की लाज ॥४१॥
श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - मेरे सद्गुरु ने मुझे सहारा देने के लिये अपने सङ्कल्प का महत्त्व समझ कर मुझ को राम नाम का उपदेश करते हुए मेरा इस जगत् से उद्धार आदि समस्त कार्य पूर्ण कर दिये । इस प्रकार उन ने मुझ को अपना समझ कर मेरी बांह पकड़ने की लज्जा रख ली ॥४१॥
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सुन्दर सद्गुरु शब्द सौं, दीया तत्व बताइ । 
सोवत जाग्या स्वप्न तें, भ्रम सब गया बिलाइ ॥४२॥
उन ने मुझ को एक 'राम' शब्द के द्वारा गम्भीर आध्यात्मिक तत्व का सार पूर्णतः समझा दिया । अब मेरी स्थिति ऐसी हो गयी है कि मैं स्वप्नावस्था से जाग्रदवस्था में लौट आया हूँ । इसके परिणामस्वरूप मेरे मन का समस्त सांसारिक भ्रमजाल पूर्णतः विनष्ट हो गया है ॥४२॥
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सुन्दर जागे भाग सिर, सद्‌गुरु भये दयाल । 
दूरि किया विष मंत्र सौं, थकत भया मन ब्याल ॥४३॥
गुरुकृपा का फल : श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - सद्‌गुरु की इस अनुपम कृपा से मेरे तो मानो भाग्य ही जग गये ! उन ने अपने भवविषनाशक राममन्त्र से मेरे मन रूपी सर्प का भयङ्कर विषयवासना रूप विष भी सर्वथा दूर कर दिया ॥४३॥
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सुन्दर सद्‌गुरु उमंगि कै, दीनी मौज अनूप । 
जीव दशा तैं पलटि करि, कीये ज्ञान स्वरूप ॥४४॥
मेरे सद्‌गुरु ने अपने शब्दोपदेश द्वारा मुझ में भवसागर को पार करने का उत्साह पैदा कर मेरे हृदय को आह्लादित कर दिया । उसके परिणामस्वरूप अब मैं अपनी जीवदशा को भूल कर ब्रह्मज्ञानमय हो चुका हूँ ॥४४॥
(क्रमशः)

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