सोमवार, 28 जुलाई 2025

संत न संग्रह करत हैं

*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*॥आचार्य गरीबदासजी ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
.
गरीबदासजी के निवास के लिए एक स्थान बनवाया । उसमें भी शिलालेख है । उक्त दोनों शिला लेखों में उक्तवृतान्त ही होना चाहिये । वे इस समय कली आदि के कारण साफ-साफ नहीं पढे जाते हैं । एक नौबतखाना और एक महाद्वार तथा महाद्वार के सामने एक विशाल चबूतरा बनाया जो गरीबदासजी के चबूतरे के नाम से प्रसिद्ध है ।
मंगलदासजी जाखल की ढांणी जमात उदयपूर वालों ने अपने रचित गुरु पद्धति में प्रधान गायक तानसेन का भी नारायणा में आकर गरीबदासजी के दर्शन तथा संगीत संबन्धी विचार करना लिखा है । गरीबदासजी अपने समय के राजस्थान के प्रधान संगीतज्ञ माने जाते थे । उनकी वीणा अब तक भी दर्शनार्थ नारायणा दादूधाम में सुरक्षित रखी हुई है ।
.
एक समय एक संत गरीबदासजी की महिमा सुनकर गरीबदासजी के दर्शन करने नारायणा दादूधाममें आये । गरीबदासजी के दर्शन करके तथा उनकी संत सेवा की पद्धति देखकर अति प्रसन्न हुये । उनके पास एक पारस पत्थर का टुकडा था । उन्होनें सोचा यह गरीबदासजी को भेंट कर देना चाहिये । यह यहां के योग्य ही है। इससे यहां सदा संतों की सेवा होती रहेगी । 
.
फिर उन्होनें श्रद्धा पूर्वक गरीबदासजी को प्रणाम करके एकान्त स्थान में अकेले गरीबदासजी को वह पारस भेंट कर दिया और कहा - यह पारस, आपके यहां संत सेवा के कार्य में काम आयेगा । गरीबदासजी ने कहा - संत जी ! हमें पारस नहीं चाहिये । अपना पारस आप ही शीघ्र उठा लें । संतों का प्रारब्ध उनके साथ ही रहता है, उसी से उनकी सेवा होती है । 
.
किन्तु संत जी ने कहा - भगवन् ! मैंने तो संकल्प कर लिया था कि इसे आपकी भेंट करूँ, सो कर दिया । अब मैं नहीं उठाऊँगा । फिर गरीबदासजी को प्रणाम करके वे विचर गये । फिर गरीबदासजी ने यह सोचकर कि इसको पास रखना तो एक बीमारी ही लगाना है । फिर गरीबदासजी उसी समय किसी को न बताकर उस पारस खंड को स्वयं ही हाथ में लेकर गरीबदास कूप में डाल आये । कहा भी है - 
“संत न संग्रह करत हैं, स्थिर प्रारब्ध हि मान । 
पारस डाला कूप में, गरीबदास सुजान ॥४४॥द्द.त.२॥
(क्रमशः) 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें