🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*१. गुरुदेव का अंग ६१/६४*
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*१. गुरुदेव का अंग ६१/६४*
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सुंदर गुरु सु रसाइनी, बहु बिधि करय उपाय ।
सद्गुरु पारस परसतें, लोह हेम ह्वै जाय ॥६१॥
महात्मा अपने कथन को आगे की चार साषियों से अधिक स्पष्ट कर रहे हैं - साधारण गुरु उस रसायनी वैदय के समान है जो शरीर की दुर्बलता एवं बुढापा दूर करने के लिए विविध रसायनों का प्रयोग रोगियों पर करता रहता है, भले ही उससे रोगियों का कष्ट दूर हो या न हो; परन्तु सद्गुरु उस पारस पत्थर के समान हैं जिस का स्पर्श पाते ही साधारण लोहा भी तत्काल दिव्य सुवर्ण में परिवर्तित हो ही जाता है ॥६१॥
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सुन्दर मसकति दार सौं, गुरु मथि काढै आगि ।
सद्गुरु चकमक ठोकतें, तुरत उठै कफ जागि ॥६२॥
साधारण गुरु उस पुरुष के समान है जो दो अरणियों को परिश्रमपूर्वक रगड़ कर अग्नि उत्पन्न करता है, परन्तु सद्गुरु उस चकमक पत्थर के समान हैं जिसकी एक रगड़ से अग्नि उत्पन्न होकर समीपस्थ सूत के गुच्छ को जला देती है ॥६२॥
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सुंदर गुरु जल खोदि कैं, नित उठि सींचै खेत ।
सद्गुरु बरसै इंद्र ज्यौं, पलक मांहिं सरसेत ॥६३॥
साधारण गुरु उस किसान के समान हैं जो नित्य प्रातः उठकर कूएँ से परिश्रमपूर्वक जल निकाल कर अपने खेतों को सींचता रहता है; परन्तु सद्गुरु उस मेघवृष्टि के समान हैं जो कुछ ही क्षण बरस कर क्षेत्र के समस्त सरोवरों को भर देती है ॥६३॥
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सुन्दर गुरु दीपक किये, घर मैं को तम जाइ ।
सद्गुरु सूर प्रकास तें, सबै अंधेर बिलाइ ॥६४॥
साधारण गुरु उस दीपक के समान हैं जो स्वयं टिमटिमाता हुआ एक छोटे से कमरे को ही जिस किसी प्रकार प्रकाश दे पाता है; परन्तु सद्गुरु उस सूर्य के समान है जिसके उदित होते ही समस्त संसार का अन्धकार तत्काल विनष्ट हो जाता है ॥६४॥
(क्रमशः)
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