बुधवार, 17 सितंबर 2025

४. बंदगी कौ अंग २८/३०

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*४. बंदगी कौ अंग २८/३०*
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सुन्दर दिल की सेज पर, औरत है अरवाह । 
इस कौं जाग्या चाहिये, साहिब बे परवाह ॥२८॥
महात्मा श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - उपर्युक्त दृष्टान्त में हृदय को शय्या मानना चाहिये, जीवात्मा(अरवाह) को पत्नी मानते हुए पति रूप में परमात्मा को मानना चाहिये । यहाँ जीवात्मा को ही सदा सावधान रहना चाहिये; परमात्मा तो सदा जापत् अवस्था में है ही ॥२८॥
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जौ जागै तौ पिय लहै, सोयें लहिये नांहिं । 
सुन्दर करिये बंदगी, तौ जाग्या दिल मांहिं ॥२९॥
यदि जीवात्मा भी जाग्रदवस्था(अविद्यावरण से मुक्त होकर ज्ञानावस्था) में रहे तो उस को उस परमपति परमात्मा का मिलन(साक्षात्कार) अवश्य हो जायगा । सोने वाले(अज्ञानी) को उस परमतत्त्व का साक्षात्कार होना असम्भव है । सुन्दरदासजी कहते हैं - इस का एकमात्र उपाय यही है कि भक्त को एकनिष्ठ होकर उस परमात्मा की भक्ति करनी चाहिये; क्योंकि भक्ति ही ज्ञान(जाग्रदवस्था) की प्राप्ति का एकमात्र उपाय है ॥२९॥
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जागि करै जो बंदगी, सदा हजूरी होइ । 
सुन्दर कबहुं न बीछुरै, साहिब सेवग दोइ ॥३०॥
इति बंदगी कौ अंग ॥४॥
जो साधक सावधान होकर प्रभु की भक्ति करता हुआ निरन्तर उसके सम्मुख रहता है ऐसा साधक उस परमपिता परमात्मा से कभी पृथक नहीं हो सकता क्योंकि स्वामी(सेव्य) एवं सेवक में कभी द्वैतभाव हो ही नहीं सकता ॥३०॥
बंदगी का अंग सम्पन्न ॥४॥
(क्रमशः)

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