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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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अन्य सिद्धों के अभिमान भी आपके सत्संग से सर्वथा नष्ट हो जाते थे । प्राय: आप सभी कार्य लोक कल्याण के लिये ही करते थे । इस कारण आपकी ख्याति दूर दूर तक स्वत: हो गई थी और देश विदेशों से अच्छे अच्छे सिद्ध संत आपके दर्शनार्थ नारायणा दादूधाम में आते थे और आपके दर्शन सत्संग से परम प्रसन्न होते थे ।
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आप सर्वहितेषी संत थे । अपने जीवन काल में आपने किसी प्राणी का अनहित नहीं किया था । जैतराम जी ने बारहदारी भी बनवाई थी जो आजकल भंडार में है और जिसके दर पर कुई है । प्रथम आचार्य बैठाने का कार्यक्रम इस बारहदरी में ही होता है । इस बारहदरी में ही प्रत्येक आचार्य के शरीर छोडने पर नश्वर शरीर खंभ के सहारे चौकी पर रखकर अन्तिम यात्रा का कार्यक्रम करते हैं ।
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यहां से अन्तिम संस्कार के लिये प्रस्थान करके समाधि स्थान में संकीर्तन करते हुये ले जाते हैं । देहान्त के तीसरे दिन इस स्थान पर आचार्य पद पर बैठाने के लिये पूज्यनीया गद्दी बिछाकर आचार्य बनाया जाता है । सिर पर टोपा ओ़ढाया जाता है । चद्दर नहीं ओ़ढाते हैं ।
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आपने अपने ब्रह्मलीन होने का समय अपनी योग शक्ति से जानकर सभी महन्त - संतों को अपने पास बुला कर दो मास पहले ही कह दिया था कि आगे आने वाली मार्गशीर्ष शुक्ला अष्टमी मंगलवार को मैं इस देह को त्याग दूंगा ।
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फिर गुरुदेवजी की आरती करी, संतों को कपडा दिया और कहा - आप लोग सब धातु से(संचित धन) महोत्सव में संतों को जिमा देना । और महोत्सव में आने वाले सभी संतों को मेरा सत्यराम कहना । मेरे शिष्य कृष्णदेव को गादी पर बैठा देना । वे अच्छे संत हैं और गादी के योग्य ही हैं ।
(क्रमशः)
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