गुरुवार, 18 सितंबर 2025

५. अथ पतिव्रत कौ अंग १/४

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
.
*५. अथ पतिव्रत कौ अंग १/४*
.
सुन्दर हरि आराध करि, है देवनि कौ देव ।
भूलि न और मनाइये, सबै भींति कै लेव ॥१॥
अन्य देवों की आराधना उपेक्षणीय : जैसे कोई साध्वी एवं सच्चरित्र स्त्री केवल अपने पति के प्रति ही अपना अनन्य प्रेम, अनुराग तथा भक्ति एवं अनन्य श्रद्धा प्रकट करती है; वैसे ही सच्चे साधक को भी भगवान् के प्रति अनन्य प्रेम, अनुराग, भक्ति एवं श्रद्धा प्रकट करते हुए उस की आराधना(भक्ति) करनी चाहिये । भूल से भी वह कभी किसी अन्य देवता के प्रति अपना ऐसा प्रेम, अनुराग, भक्ति एवं श्रद्धा प्रकट न करे; क्योंकि अन्य देवता तो घर की दीवार के समान निरर्थक हैं । अतः उनके प्रति दिखाया गया साधक का प्रेम या अनुराग आदि भी निरर्थक ही सिद्ध होता ॥१॥
.
सुन्दर और कछू नहीं, एक बिना भगवंत ।
तासौं पतिव्रत राखिये, टेरि कहैं सब संत ॥२॥
महात्मा श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - सब सन्तों का भी यही कथन है कि एकमात्र निरञ्जन, निराकार प्रभु के अतिरिक्त अन्य सब देवता निरर्थक ही हैं । अतः प्रत्येक साधक को निरञ्जन निराकार प्रभु के साथ अपना पतिव्रत धर्म(अनन्य प्रेम तथा अनुराग आदि) प्रकट करना चाहिये ॥२॥
.
सुन्दर और न ध्याइये, एक बिना जगदीस ।
सो सिर ऊपर राखिये, मन क्रम बिसबा बीस ॥३॥
वे कहते हैं - किसी भी साधक(भक्त) को एकमात्र जगत्प्रतिपालक, जगत् के स्वामी निरञ्जन निराकार प्रभु के अतिरिक्त किसी अन्य देवता का ध्यान(चिन्तन, मनन) नहीं करना चाहिये । अपितु अपने मन वचन एवं कर्म द्वारा उस निराकार प्रभु को अपने सिर पर रखते हुए(सर्वश्रेष्ठ मानते हुए) उसी की आराधना करनी चाहिये ॥३॥
.
सुन्दर कछु न सराहिये, एक बिना भगवांन ।
लच्छन लागै तुरत ही, सबहिं सराहै आंन ॥४॥
अन्य देव की आराधना भक्त का अपराध : किसी भी सच्चे साधक को किसी अन्य देवता की प्रशंसा(सराहना) भी नहीं करनी चाहिये; क्योंकि इससे उस साधक पर लोक में कलङ्क ही लगेगा कि यह तो प्रत्येक देवता की प्रशंसा करता है; इसका कोई एक आराध्य देव नहीं हैं । यदि वह किसी अन्य देवता की प्रशंसा न कर एकमात्र अपने आराध्य की उपासना करेगा तो इससे उसकी लोक में सर्वत्र प्रशंसा ही होगी कि यह एकनिष्ठ भक्त है ॥४॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें