सोमवार, 22 सितंबर 2025

*५. पतिव्रत कौ अंग १७/२०*

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*५. पतिव्रत कौ अंग १७/२०*
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बिभचारणि नाकी बिना, लाज सरम कछु नांहिं । 
कालौ मुख कीयां फिरै, सकल जगत कै मांहिं ॥१७॥
क्योंकि व्यभिचारिणी स्त्री तो निर्लज्ज(नकटी) हो जाती है, उसे अब किसी प्रकार की सामाजिक लज्जा(शर्म) नहीं रह जाती । अतः उस का समस्त लोकसमाज में अपमान(काला मुँह) ही होने लगता है ॥१७॥
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विभचारिणि यौं कहतु है, मेरौ पीय सुर्जान । 
सुन्दर पतिबरता कहै, काटै तेरै कांन ॥१८॥
व्यभिचारिणी स्त्री यदि किसी पतिव्रता स्त्री से कहती है - 'मेरा पति तेरे पति से सुजान है', तो पतिव्रता स्त्री अपने जैसे तैसे पति के लिये भी यही कहती है - 'मेरा पति तेरे पति से सब प्रकार से बढ चढ कर है । वह चतुरता में तेरे पति के कान काटता है' ॥१८॥
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विभचारिणि यौं कहतु है, मेरौ पिय अति पाक । 
सुन्दर पतिबरता कहै, काटै तेरौ नाक ॥१९॥
जब कोई व्यभिचारिणी किसी पतिव्रता से यह कहे - 'मेरा पति तेरे पति से समाज में अधिक प्रतिष्ठित है', तो पतिव्रता तत्काल उत्तर देती है - 'अरी ! मेरा पति सामाजिक प्रतिष्ठा में भी तेरे पति की नाक काटने की स्थिति में है ।' अर्थात् मेरे पति की सामाजिक प्रतिष्ठा भी तेरे पति से बढ़ चढ़ कर है ॥१९॥
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विभचारिणि यौं कहतु है, शोभित मेरौ कंत । 
सुन्दर पतिबरता कहै, तोड़ै तेरै दंत ॥२०॥
यदि कोई व्यभिचारिणी किसी पतिव्रता से यह कहे - 'मेरा पति तेरे पति से सुन्दर है', तो पतिव्रता उसको, उलट कर, यही उत्तर देती है - 'मेरा पति सुन्दरता में भी तेरे पति के दाँत तोड़ सकता है' । अर्थात् वह उससे बढ चढ कर सुन्दर है ॥२०॥
(क्रमशः)

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