सोमवार, 22 सितंबर 2025

आचार्य कृष्णदेव जी

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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अथ अध्याय ४ 
६ आचार्य कृष्णदेव जी 
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आचार्य जैतराम जी के ब्रह्मलीन हो जाने पर उनकी आज्ञा के अनुसार कृष्णदेव जी को ही उत्तराधिकारी मार्गशीर्ष शुक्ला ११ शुक्रवार सं. १७८९ को बिना किसी विरोध के चुना गया । कृष्णदेव जी पूर्वाश्रम में पुरोहित ब्राह्मण थे फिर कृष्णदेव जी अपने गुरुजी के महोत्सव की तैयारी करने लगे । 
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नारायणा दादूधाम पर गुरु भाव रखने वाले राजा, महाराजा, समाज के महन्त, संत, सेवकों को महोत्सव के निमंत्रण भेज दिये गये । फिर जिनके यहां से आचार्य गद्दी पर बैठने के लिये पूर्वकाल से ही भेंट आती थी, वैसे ही सब राजाओं ने अपने यहां से भेंट आदि अपने मंत्रियों के साथ भेज दिये । 
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अन्य संत महन्त, सद्गृहस्थ आदि भी दादूधाम नारायणा में आ गये । फिर टोपा(प्रथम टोपा सिर पर रखते हैं चद्दर नहीं उढाते) उढाया संस्कार के समय सब ने मिलकर श्री कृष्णदेव जी का आचार्य पद पर अभिषेक किया और दुशाले तथा चादरें उढा कर श्री दादू जी महाराज की जय ध्वनि की । 
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फिर प्रसाद बांटा गया और एक विद्वान संत ने खडे होकर कहा - आज से दादूपंथ के आचार्य हम सब कृष्णदेव जी को मानेंगे । इन की आज्ञा में रहने से समाज में सुख शांति का विस्तार होगा । आप उच्च कोटि के भजनानन्दी संत हैं । आपकी योग्यता को देखकर ही आचार्य जैतरामजी इनके लिये कह गये थे कि गद्दी पर कृष्णदेव को ही बैठाना । सो आज हम उनकी आज्ञा का पालन करके कृतकृत्य हो गये हैं । 
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अब हम सब को कृष्णदेव जी की आज्ञा में ही रहना चाहिये और आपके भजन - साधन आदि का भी हम को अनुकरण करना चाहिये । इनके उक्त अनुकरण से समाज की कीर्ति का विस्तार होगा । इस में संशय को कोई भी प्रकार का अवकाश नहीं है । 
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यह कहकर उन्होंने दादूजी महाराज की जब बोली फिर बैठ गये फिर सभा का कार्य समाप्त हो गया । सब संत भक्त अपने २ निवास स्थानों पर चले गये । कृष्णदेव जी ने एक बारहदरी भी बनवाई थी जो जैतरामजी की बारहदरी से लगती हुई पश्चिमोत्तर कोने पर स्थित है । उसमें चौबारा झरोखा आदि भी है । यह परली बारहदरी के नाम से प्रसिद्ध है । 
(क्रमशः) 

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