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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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ब्रह्मलीन होने के दिन आप ब्रह्म मुहूर्त में ही समाधिस्थ हो गये थे । फिर संतों ने प्रभु से प्रार्थना की तब प्रभु ने आपको समाधि में प्रेरणा दी । तब समाधि से उठे और और कथा कीर्तन हो जाने पर आसन विराजे । उस समय आज महाराज देह त्यागेंगे इसलिये दर्शनार्थियों की भारी भीड लग गई थी ।
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उस भीड को देखकर आपने कहा - भीड को छोड कर जैसे हम ब्रह्मचिन्तन करते हैं, वैसे ही आप लोग भी ब्रह्मचिन्तन करो । इतना कह कर आपने सात श्वास लिये और आठवां श्वास बाहर निकलकर व्यापक वायु में मिल गया । आत्मा ब्रह्म में मिल गया ।
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तब सब संतों ने कहा -
“जैत मिले जगदीश में, सब मिल बोले संत ।
जैत जानना कठिन था, किन हुन पाया अंत ॥”
आज वि.सं. १७८९ मार्गशीर्ष शुक्ला अष्टमी मंगलवार को ३९ वर्ष ३ मास १५ दिन दादूधाम नारायणा के आचार्य पद पर रहकर जैतराम जी महाराज ब्रह्मलीन हुये ।
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कहा भी है -
सतरासै अगहन सुदी, अष्टमी मंगलवार ।
समय निवासिये जानिये, जैत तजा संसार ॥
अष्टमी तिथि को ही दादू जी महाराज ब्रह्मलीन हुये थे और जैतराम जी आदि कुछ आचार्य भी अष्टमी को ही ब्रह्मलीन हुये हैं ।
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कहा भी है -
“पाई आठै परमगुरु, जैत चैन निर्भयराम ।
जीवण सोई जाणिये, आठै ईश समान ॥”
तपे वर्ष चालीस लों, गुणसठ रह्या शरीर ।
ब्रह्म तत्त्व उपदेश कर, मानो उडे अबीर ॥
जैत सरीखा जौहरी, दादू के दरबार ।
जैत ज्योति जगदीश की, तिहिं गुण वार न पार ॥
(क्रमशः)

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