रविवार, 12 अक्टूबर 2025

*६. उपदेश चितावनी कौ अंग ४१/४४*

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*६. उपदेश चितावनी कौ अंग ४१/४४*
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सुंदर बैठा क्यौं अबै, उठि करि मारग चालि । 
कै कछु सुकृत कीजिये, कै भगवंत संभालि ॥४१॥
अरे साधक ! अब तूं निष्क्रिय(बेकार) क्यों बैठा है । अपना कोई मार्ग निश्चित कर उस पर चलने का विचार कर । या तो अब किसी सत्कर्म में लग जा, या फिर भगवद्भक्ति का मार्ग ही स्वीकार कर ले ॥४१॥
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सुंदर सौदा कीजिये, भली बस्तु कच्छु खाटि । 
नाना बिधि का टांगरा, उस बनिया की हाटि ॥४२॥
तूं उस भगवद्रूप बणिये(व्यापारी) की दुकान पर जाकर जाँच परख कर किसी अच्छी अस्तु का चयन कर ले, क्योंकि इस बणिये की दुकान में भली बुरी सभी वस्तुओं(टांगरा) का संग्रह है, अतः वहाँ से जो वस्तु खरीदना चाहे, खरीद ले ॥४२॥
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सुंदर विष खालि खार तजि, लै केसरि कर्पूर । 
जौ तूं हीरा लाल ले, तौ तौ साँ नहिं दूर ॥४३॥
उस बणिये की दुकान में सभी भली बुरी वस्तुओं का संग्रह है । वहाँ विष(जहर), खल(निस्सार बस्तु), खार(खट्टी मीठी) वस्तुओं को छोड़ कर तूं वहाँ से केसर कपूर का संग्रह कर ले । यदि तूं वहां से रामभक्ति रूप हीरा भी खरीदना चाहे तो वह भी तुझ से अधिक दूर नहीं है ॥४३॥
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सुंदर ठगबाजी जगत, यह निश्चय करि जांनि । 
पहलै बहुत ठगाइयौ, उहै घणौं करि मांनि ॥४४॥
परन्तु इसके विपरीत यह तू भली भाँति समझ ले कि यह व्यावहारिक जगत् ठगी से भरा पड़ा है । अरे! तूं इस में रह कर पूर्व जन्मों में इसकी ठगी का बहुत बार लक्ष्य बन चुका है, उस को ही बहुत अधिक समझ कर, अब उस से दूर हट जा ॥४४॥
(क्रमशः)

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