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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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७ आचार्य चैनराम जी ~
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बालानन्द जी का आना ~ फिर बालानन्दजी ने वैष्णवों के चारों ही संप्रदायों के साधुओं को निमंत्रण दे देकर बुलाया और बारह हजार साधु एकत्र हो गये । तब वैष्णव धर्म का प्रचार करने का निमित्त लेकर भ्रमण करते हुये नारायणा दादूधाम में आ पहुँचे । नारायणा दादूधाम से उत्तर की ओर अपनी छावणी डाली । वहां साधु लोग अपने - २ छाते, तंबू आदि तानने लगे ।
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उनको देखकर स्थानीय साधुओं ने चैनरामजी महाराज को कहा - आज तो वैरागी साधुओं की बहुत बडी जमात आई है । साधुओं का उक्त वचन सुनकर आचार्य चैनरामजी ने कहा - वैरागी स्वयं पाकी होते हैं । भंडार में जीमें या नहीं भी जीमें भंडार से उनको सूखा सामान दे देना और भंडार में जीमें तो आप लोग उनका प्रबन्ध कर सको तो भंडार में बुलाकर जीमा देना ।
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भंडारी ने कहा - महाराज ! उनको तो सूखा सामान ही देना चाहिये । वे इसी में प्रसन्न होते हैं । आचार्य चैनरामजी ने कहा - बहुत अच्छा संत जिससे प्रसन्न हों वही अपने करना हैं । फिर आचार्य चैनरामजी ने अपने कोटवाल को कहा जमात के महन्त को मेरी सत्यराम कहकर कहना - सब संतों के लिये रसोई का सामान दादूद्वारे के भंडार से ले जायें और कोई विशेष सेवा हो तो वह भी सूचित करें जिससे वह भी कर दी जायगी ।
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फिर कोटवाल महाराज को सत्यराम करके छावनी में गया और बालानन्दजी को सत्यराम प्रणाम कर के कहा - दादूद्वारे के आचार्य जी ने आप सब संतों को सत्यराम कहा है और कहा है - रसोई का सब सामान सब संतों के लिये दादू द्वारे के भंडार से ही लावें तथा अन्य कोई सेवा हो तो सूचित करें जिससे वह भी की जाय । महाराज ने कहा है सेवा बताने में संकोच नहीं करना ।
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कोटवाल की उक्त बात सुनकर बालानन्दजी ने कहा - ठीक है । मेरा भी आचार्य जी को सीताराम कहना और विशेष सेवा तो आचार्य जी के पास आकर मैं ही उनको कहूंगा, तुमको बताने की नहीं है । फिर कोटवाल ने कहा - बहुत अच्छा सत्यराम अब आपकी छावनी के सब संतों का दर्शन करके लौट रहा हूँ । आप रसोई के सामान के लिये साधुओं को भेज देना ।
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फिर वह छावनी के सब संतों के दर्शन के निमित्त से इधर उधर फिरा तो उसने प्रत्येक साधु के आसन पर नाना प्रकार के शस्त्र देखे । फिर एक भोले से साधु को एकांत में ले जाकर पूछा - यहां से आप लोग कहाँ जायेंगे ? उसने कहा - यहां ही आये हैं । दादूद्वारे के आचार्य को माला, तिलक और कंठी देकर वैरागी बनाने के लिये ।
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कोटवाल ने पूछा - ये इतने शस्त्र क्यों लाये ? हैं । उसने कहा - बालानन्द जी दृढ़ निश्चय करके लाये हैं, वैसे वैरागी नहीं बनेंगे तो शस्त्रों से मार के बनायेंगे । इसीलिये शस्त्र लाये हैं कोटवाल उस साधु की बातें सुनकर तथा उनके सब रंग ढंग को देख कर शीघ्र ही आचार्य चैनरामजी के पास आया और एकांत में उक्त बातें उनको सुनाई ।
(क्रमशः)
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