गुरुवार, 9 अक्टूबर 2025

समाज में शांति सुख का विस्तार

*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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७ आचार्य चैनराम जी ~ 
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उन पत्रों को पढकर नागों के महन्त, सन्तों ने अपनी सभा की और उसमें यह निश्‍चय किया कि - उतराधे आदि हमारी बात नहीं मानते अत: इनको पकडवाकर कैद करा दिया जाय । यह निश्‍चय करके तत्कालीन जयपुर नरेश सवाई माधोसिंह प्रथम के पास जाकर कहा - हमारे समाज के आचार्य जो सरकार की सम्मति से बैठाये गये हैं, उनको बल पूर्वक हटा कर हरियाणा व पंजाब के लोग दूसरा बैठना चाहते हैं, और इसके लिये वे सांभर में एकत्र हो रहे हैं । 
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वे लोग नारायणा दादूधाम आ गये तो बहुत बडा उपद्रव हो जायगा । अनेक मानव मारे जायेंगे । अत: उन उपद्रव करने वालों को वहां पकड कर कैद कर दिये जाँय । राजा ने संतों को कैद करना तो उचित नहीं समझा किन्तु नारायणा दादूधाम पर सेना भेज दी, जिससे वहां कोई प्रकार का उपद्रव नहीं हो सके । 
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नारायणा दादूधाम पर सेना का आना सुनकर उतराधे आदि सब सांभर को छोडकर करडाले चले गये और दादूजी महाराज के तपस्या स्थल पर प्रार्थना करना आरंभ कर दिया । प्रार्थना प्रात: सायं सब संत करते थे । हे भगवन् ! नागों को, गंगारामजी और कृपारामजी को ऐसी सद्बुद्धि दीजिये जिससे समाज में एकता होकर भेद भ्रांति जन्य विग्रह समाप्त हो जाय और नागे ही स्वयं जाकर मेडता से आचार्य चैनरामजी को नारायणा दादूधाम में लाकर गद्दी पर बैठावें । 
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समाज में शांति सुख का विस्तार हो । उक्त प्रकार प्रार्थना कई दिन तक सब संत करते रहे । तब नागों में, कृपारामजी और गंगारामजी में भी यह भावना उत्पन्न हो गई कि - गुरुवर कृष्णदेवजी की आज्ञा हम सब को ही माननी चाहिये और चैनरामजी को नारायणा दादूधाम पर लाना चाहिये ।
(क्रमशः) 

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