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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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८ आचार्य निर्भयरामजी
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निर्भयरामजी महाराज अति तेजस्वी, महा प्रतापी, वचनसिद्ध, शक्तिशाली महात्मा आचार्य हुये थे । निर्भयरामजी की सेवा में उतराधा मंडल की और से ५ - ७ साधु और नागों की ओर से १२ मूर्ति सदा रहते थे । वे लोग ही सब कार्य करते थे । आचार्य गद्दी पर विराजे हुये केवल भजन ही करते थे ।
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एक दिन आचार्य निर्भयराम जी महाराज गद्दी पर विराजे ही थे । कि उसी समय कुछ सेवक बाहर से दादूधाम की यात्रा करने आये थे । उनके साथ बाल - बच्चे भी थे । वे सब महाराज के दर्शन करने आये तब महाराज ने पूछा - आप लोग कहां से आये हैं ? उन लोगों ने अपने ग्राम का तथा प्रान्त का नाम बता कर कहा - महाराज ! हम यहां की यात्रा और आपके दर्शन करने आये हैं ।
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यहां आते ही दादूधाम के दर्शन से तथा विशेष करके आपके दर्शन से हम लोगों को अति हर्ष हुआ है । पास रहने वाले साधुओं को उक्त प्रकार महाराज का प्रश्न करना अच्छा नहीं लगा । उनका भाव था, इस कार्य के लिये तो हम महाराज के पास रहते हैं । स्वयं महाराज ऐसे प्रश्न करें यह महाराज को शोभा नहीं देता । यह सब बाते तो हम लोग पूछकर महाराज को बतावें इसी में महाराज की शोभा है ।
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फिर उन साधुओं ने उन आये हुये सेवकों के ठहरने का प्रबन्ध किया और उनको ले गये । उनको उचित स्थान में ठहरा कर उनकी सब व्यवस्था उचित रुप से कर दी और उनको कह दिया, आपको कोई भी असुविधा हो तो हमको कह देना ।
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फिर महाराज को अकेले देखकर कुछ साधुओं ने प्रार्थना की - महाराज ! हम लोग आपकी सेवा में प्रति क्षण रहते हैं । हमारे रहते हुये आप आने वालों से उनका परिचय पूछें - व्यवहारिक प्रश्न करें, यह ठीक ज्ञात नहीं होता । यदि आप से कोई पूछे तो आपका उत्तर देना उचित है आप तो समर्थ हैं, आपको तो बिना पूछे ही सब ज्ञान होने की आशा हम सब करते हैं ।
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हम चाहते हैं कि आप तो गद्दी पर विराजे हुये ब्रह्म - भजन ही किया करें अन्य सब काम करने वाले हम आप के सेवक हैं, सब कर लिया करेंगे । साधुओं की उक्त बातें सुनकर निर्भयराम जी महाराज ने उस समय प्रतिज्ञा कर ली कि - अब से आगे हम केवल भजन ही करेंगे, और कुछ नहीं करेंगे । फिर आप जीवन भर भजन ही करते रहे थे । अन्य व्यवहारिक कार्यों में भाग नहीं लेते थे ।
(क्रमशः)

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