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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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८ आचार्य निर्भयरामजी
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फिर राजा निर्भयरामजी महाराज के चरणों में मस्तक रखकर बोला - स्वामिन् ! मुझे इस गो हत्या के पाप से बचाइये । निर्भयरामजी महाराज ने कहा - तुम मद्य मांस का परित्याग करो । आज आगे नहीं खाओ पीओगे तो हम बचा देंगे । राजा ने प्रतिज्ञा करली कि आगे मैं न शिकार करुंगा और न मद्य मांस खाऊं पीऊंगा ।
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कहा भी है -
“निर्भयरामजी जाय के, दरस्या मृग हि समान ।
राजा जब भलिका दिया, पडी गाय अरडान ॥
गो लख राजा कंपियो, धृग जीवन रज वंश ।
निर्भयरामजी दर्शन दिया, त्याग दिया मद मंस ॥
(दौलतराम)
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फिर राजा को अपने सामने दीन भाव से खडा देखकर निर्भयरामजी महाराज बोले - राजन् ! तुम अन्य सब काम छोडकर पहले गंगा स्नान कर आओ, इस पाप से मुक्त हो जाओगे । राजा ने आचार्य निर्भयरामजी महाराज की आज्ञा मानली और सीधे गंगा स्नान के लिये चले गये ।
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स्नान करने के पश्चात् राजा वक्तावरसिंह ने वहां निर्भयरामजी महाराज को हाथी की सवारी से जन समूह के साथ मार्ग में जाते देखा । जनता संकीर्तन करती जा रही थी और बीच - बीच में निर्भयरामजी महाराज की जय भी सुनने में आती थी । राजा ने पूछा - ये हाथी कौन का है ? उत्तर मिला नारायणा दादूधाम के आचार्य निर्भयरामजी महाराज का है ।
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उक्त वचन सुनकर राजा को अति आश्चर्य हुआ कि - आचार्य निर्भयरामजी यहां मेरे से पहले कैसे आ सकते थे ? उनको तो मैं राजगढ में छोडकर आया था किन्तु दीखते तो वे ही हैं । आश्चर्य तो होना ही था । निर्भयरामजी की योग शक्ति से राजा तो परिचित नहीं थे । योगियों के लिये तो यह साधारण सी बात है । वे अपनी योग शक्ति से ऐसी अनेक लीलायें दिखा सकते हैं ।
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राजा लौटकर राजगढ में आया और लोगों से पूछा - निर्भयरामजी महाराज गंगा स्नान के लिये गये हैं क्या ? सबने कहा नहीं वे तो यहां ही हैं, हम प्रतिदिन दर्शन सत्संग के लिये उनके पास जाते हैं । लोगों के उक्त वचनों को सुनकर राजा के मन में निश्चय हो गया कि - ये तो महान् संत हैं, इनके लिये कोई भी घटना असंभव नही हो सकती ।
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महान् संत ऐसे ही अपनी योग लीला भक्तों के कल्याण के लिये दिखा देते हैं । मेरे पर विशेष कृपा होने से मुझे वहां भी दर्शन दे दिया था । यह विचार अपने मन में करके राजा हर्षित हुआ । फिर निर्भयरामजी के दर्शन करने गया और १ मोहर १०५) रु. भेंट करके सत्यराम बोलकर दंडवत की ।
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फिर खडा होकर हाथ जोडे हुये बोला -
आवन हुओ आपको, पावन कियो सु देश ।
स्वामी निर्भयरामजी, चरण शरण वक्तेश ॥
अलवर नरेश वक्तावरसिंह निर्भयरामजी को गुरु मानते थे, उन पर पूरी श्रद्धा रखते थे । सुनते हैं राजा ने निर्भयरामजी महाराज के चावा का वास ग्राम भी भेंट किया था । किन्तु निर्भयरामजी महाराज तो ग्राम लेते ही नहीं थे । उन्होंने नहीं लिया ।
(क्रमशः)

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