गुरुवार, 13 नवंबर 2025

*९. देहात्मा बिछोह को अंग ९/१२*

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*९. देहात्मा बिछोह को अंग ९/१२*
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हँसै न बोलै नैंक हूं, खाइ न पीवै देह । 
सुन्दर अंनसन ले रही, जीव गयौ तजि नेह ॥९॥
इस देह के प्राण से रहित होने पर, यह देह न हँसता है, न किसी से कुछ बात करता है, न खाता ही है, न पीता है । उस समय यह देह जीवित प्राणी के सभी कर्मों से रहित हो जाता है ॥९॥ (तु०-सवैया ग्र०, ९/३)
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पाथर से भारी भई, कौंन चलावै जाहि । 
सुन्दर सो कतहूं गयौ, लीयें फिरतौ ताहि ॥१०॥
प्राणवियोग के अनन्तर, यह मानव देह पत्थर से भी अधिक भार वाली हो गयी । सुन्दरदासजी महाराज पूछते हैं - इस का वह सञ्चालक कहाँ गया जो इस का सुगमता से सञ्चालन करता था ? ॥११॥
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सुन्दर पांणी सींचतौ, क्यारी कंणकै हेत । 
चेतनि माली चलि गयौ, सूक्यौ काया खेत ॥११॥
श्रीसुन्दरदासजी पूछते हैं - इस देह – उद्यान का वह माली कहाँ चला गया, जो अपनी जीवनयात्रा चलाने के लिये अन्न उत्पादन हेतु प्रत्येक वृक्षपंक्ति को जल से सींचता था ! वह चेतन(आत्मा) माली कहाँ है । उस के विना तो यह काया रूप खेत अब सर्वथा सूख गया है ॥११॥
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ज्यौं कौ त्यौं ही देखिये, सकल देह कौ ठाट । 
सुन्दर को जांणै नहीं, जीव गयौ किहिं बाट ॥१२॥
श्रीसुन्दरदासजी कहते है - इस देह का, प्राणों से वियुक्त होने पर भी, समस्त आकार प्रकार, पूर्ववत्(प्राण-संयोग के समय का) ही हमें दिखायी दे रहा है । इसके हाथ, पैर, नाक कान हमें पूर्ववत् ही दिखायी दे रहे हैं । तो भी इस का स्थायी निवासी(रहने वाला) किस मार्ग से किधर निकल गया ! - यह कोई नहीं जानता ॥१२॥
(क्रमशः) 

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