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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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८ आचार्य निर्भयरामजी
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शेखावटी की रामत ~
वि. सं. १८६५ में आचार्य निर्भयराम जी महाराज ने शेखावटी की रामत की । रामत करते - करते आप रामगढ पधारे । वहां पोद्दार भक्तों ने आपका बहुत अच्छा सामेला स्वागत सत्कार किया और सुन्दर और एकान्त स्थान में ठहराकर सेवा का सुचारु रुप से प्रबन्ध किया ।
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पोद्दार सेवकों की दादूवाणी और अपनी परंपरा के आचार्य निर्भयराम जी पर तो अटूट श्रद्धा थी ही किन्तु अब उनके सभी परिवारों को आचार्य जी के दर्शन और सत्संग से अति आनन्द प्राप्त हो रहा था । वे संत दर्शन सत्संग और संत सेवा तीन प्रकार का लाभ एक साथ ही ले रहे थे । यह प्रसंग उनके विशाल भाग्य का ही द्योतक है ।
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पोद्दार सेवकों ने जब तक आचार्य निर्भयराम जी महाराज रामगढ में विराजे तब तक पूर्ण श्रद्धा भक्ति से अच्छी सेवा की और जब महाराज रामगढ से जाने का विचार करने लगे तब सेठों ने दिल खोल कर अच्छी भेंट दी । उन भेंटो का सब द्रव्य आचार्य निर्भयराम जी महाराज ने नारायणा दादूधाम के सदाव्रत विभाग को वहां रामगढ में ही प्रदान कर दिया । इससे पोद्दार सेवकों की श्रद्धा निर्भयराम जी महाराज पर पहले से दूनी हो गई । त्याग का ऐसा ही प्रभाव होता है ।
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दौलतपुरा चातुर्मास ~
वि. सं. १८६७ में दौलतपुरा में चातुर्मास किया । इस चातुर्मास में भी श्री दादूवाणी के प्रवचन, जागरण, संकीर्तन आदि पुण्य कार्य बहुत अच्छी प्रकार होते रहे । फिर दौलतपुरा का चातुर्मास समाप्त करके भक्तों व संतों की विशेष प्रार्थना व अत्यधिक आग्रह करने से राजावाटी की रामत करने का निश्चय किया गया ।
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राजावाटी की रामत ~
राजावाटी की रामत में कालाडैरा के महन्त हरिराम जी ने मंडल के सहित आचार्य निर्भयराम जी महाराज को अति आग्रह से दो दिन अपने यहां रक्खा और मंडल के सहित आचार्यजी की अच्छी सेवा की । जनता को दादूवाणी के प्रवचन, आचार्य जी के सहित सब संतों के दर्शन सत्संग से अति लाभ हुआ ।
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जनता ने भी श्रद्धा भक्ति से आचार्य जी तथा संतों की सेवा की । कालाडैरा से विचरने लगे तब महन्त हरिराम जी ने आचार्य निर्भयराम जी को १००१) रु. भेंट किये । फिर भ्रमण करते आचार्य निर्भयराम जी महाराज मंडल के सहित वसवा पधारे ।
(क्रमशः)

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