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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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८ आचार्य निर्भयरामजी
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मीरखान का उपद्रव
आचार्य निर्भयराम जी के समय में एक मीरखान मुसलमान देश को लूटता खसोटता हुआ देश में घूमता फिरता था । उसके साथ बहुत से लुटेरे रहते थे । निर्भयराम जी महाराज रामत में गये हुये थे । उन ही दिनों में मीरखान लूटता - खसोटता नारायणा दादूधाम की ओर भी आने लगा तब विचार हुआ वह दादूद्वारे को भी लूटेगा ।
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मीरखान का उपद्रव सुनकर के नागों की जमातों के महन्तों ने आचार्य निर्भयराम जी कहा - हम दादू द्वारे की रक्षा के लिये जायें । निर्भयराम जी महाराज ने कहा - काहे को व्यर्थ की हिंसा में प्रवृत होते हो । फिर जमातों के महन्तों ने कहा - युद्ध नहीं करेंगे उसके आने से पहले ही जो दादूद्वारे में अच्छा - अच्छा सामान है, सो दादूद्वारे से निकाल लायेंगे ।
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निर्भयराम जी महाराज ने कहा - उसको दादूद्वारे में दालिद ही मिलेगा अर्थात् बेकार सामान ही मिलेगा उसे वह ले जाये तो भी कोई चिंता की बात नहीं है । फिर मीरखान अपने साथी डाकुओं के दल के साथ सरोवर के पास आया, तब जिस घोडे पर वह चढता था वह घोडा तालाब के ताल में जा पडा और वह ऐसे दडी के चोट लगने से वह उछलती है, वैसे ही वह घोडा उछलकर तालाब के ताल में पड गया ।
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फिर उसके सब शेष दल ने तालाब के खाली ताल में पडवा डाल दिया । दादूद्वारा उस समय खाली कर दिया था उसमें कोई भी नहीं रहता था । तथा स्थान में कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता था । जाता उसे सिंह दीखता था फिर वे वहां अनर्थ करने लगे तब उन सब के मल - मूल रुक गये । अत: मीरखान नारायणा दादूधाम से चला गया । गुरुपद्धति में इस घटना का परिचय इस प्रकार दिया है -
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सवैया -
लूटत हो लख वा दल देशहि,
सो गुरु द्वार नजीक हु आयो
महन्त जमात कह्यो हम जावत,
लाय सबै खटलो मन भायो ॥
स्वामी कह्यो सु बढयो वह दालिद,
ले किन जायउ सोच न कायो ।
ले दल आप हि आत भयो,
असु एक जु सागर ताल परायो ॥
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दोहा -
दडी दोट ज्युं उडत ही, परियो सागर ताल ।
बन्धन सेना सेनपति, धनि धनि दीन दयाल ॥५१॥
मीरखान के विध्न समै, सूनो कियो सथान ।
हिन्दू तुरक न बड सके, दीखे सिंह निदान ॥
(गुरु पद्धति प्रकाश ३३) ।
(क्रमशः)

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