शुक्रवार, 12 दिसंबर 2025

धन धन ठंडेराम

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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१० आचार्य दिलेराम जी
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इस समय में आचार्य दिलेरामजी महाराज के दो भंडारी मुख्य थे - 
१ - नोनन्दरामजी और दूसरे अखजी । दोनों ही मंदिर निर्माण के कार्य में पूरा - पूरा भाग लेते थे । चूने भाटे का काम करने वाले राजों में - हरिकृष्ण, सुखराम और साहबराम मुख्य थे । तीनों ही मंदिर निर्माण के कार्य में आठों पहर संलग्न रहते थे अर्थात् दिन के अधिक भाग में करणी चलाते थे और रात्रि में जब तक सोते नहीं थे तब तक मंदिर संबन्धी ही विचार करते थे । 
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सब से बडे मिस्तरी शोभाराम के पुत्र शिवराम थे । उक्त सभी सज्जनों ने दादूदयालजी महाराज के मंदिर निर्माण का कार्य सप्रेम किया था । इस मंदिर में उस समय महात्मा ठंडेरामजी का इकतीस हजार पांच सौ पांच रुपया खर्च हुआ था । 
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मकराणे के पत्थर मकराणो से लाने वाले भक्त किसानों ने भी किराया नहीं लिया था । इत्यादिक और कार्य ऐसे थे जो दादूजी के भक्तों ने सेवा भाव से ही किये थे । उस समय के स्वामी सीताराम ने मंदिर का संक्षिप्त परिचय दिया है, वह भी यहां दिया जाता है । सीतारामजी ने ठंडेरामजी की गुरु परंपरा का परिचय देकर मंदिर निर्माण का परिचय दिया है देखिये -
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कौन थम्भ शिष कौन के, कौन सु गुरु को नाम ।
यह प्रणालि अब सब सुनो, कह कवि सीताराम ॥१॥
सवैया - 
आप निरंजन रुप धर्यो, गुरु दादू के शिष्य भये बनवारी । 
दास छबील के श्याम भये शिष, दास नरान बडे उपकारी ।
हरि भक्त के सहज भये शिष, आशा जगत् की आश निवारी । 
ठंडेराम भये तिन मंदिर, धाम बनाय किया जस भारी ॥२॥
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इस सवैया से सूचित होता है - (१)निरंजन बृद्ध(ब्रह्म), (२)दादूजी, (३)बनवारीजी, (४)छबीलदासजी, (५)श्यामदासजी, (६)नारायणदासजी, (७)हरिभक्तजी, (८)आशाजी, (९)ठंडेरामजी । इन्हीं ठंडेरामजी ने नारायणा दादूधाम का विशाल मंदिर बनवाया था । 
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स्वामी दिलेरामजी गादी तपे दयाल ।
तब ही दादू दयाल को, मंदिर बन्यो विशाल ॥१॥
मंदिर बन्यो विशाल, माल हरि हेत लगायो ।
धन धन ठंडेराम, धाम यह खूब बनायो ॥२॥
याके खेवन हार, भंडारि दोनों जानो ।
एक जु नौनन्दराम, दूसरे अखजी मानो ॥३॥
भौन कियो हरि कृष्ण जु, सुख पुनि साहबराम ।
ये खेवट सब काम के, निशि दिन आठों जाम ॥४॥
गुरु द्वारे मंदिर कियो, कियो अनोखो काम ।
अकलबन्द उस्ताद हैं, शोभा सुत शिवराम ॥५॥
बीजक मांड्यो वित्त को, जो लाग्यो या ठौर ।
इकतीस सहस पुनि पांच सौ, पांच ऊपरै और ॥६॥
मिति जेष्ठ सुदि चौथ बुध, चतुरासो के साल ।
अष्टादश के समय में, लागी नींव विशाल ॥७॥
(क्रमशः)

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