गुरुवार, 11 दिसंबर 2025

*१३. देह मलिनता गर्ब प्रहार कौ अंग ५/८*

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*१३. देह मलिनता गर्ब प्रहार कौ अंग ५/८*
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सुन्दर मुख मैं हाड सब, नैंन नासिका हाड । 
हाथ पांव सब हाड के, क्यौं नहिं समुंझत राड ॥५॥
अरे अभागे ! (राड!)तूं यह क्यों नहीं समझ पाता कि तेरा यह समस्त शरीर केवल अस्थि-कङ्काल(हड्डियों का पिंजर) है । तेरे मुख में दांत, नाक, आंख, हाथ पैर - ये सब हड्डियों से ही बने हुए हैं ना ! ॥५॥
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सुन्दर पंजर हाड कौ, चाम लपेट्यौ ताहि । 
तामैं बैठ्यौ फूलि कै, मो समान को आहि ॥६॥ 
श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - तेरा यह शरीर अस्थि कङ्काल मात्र है, इसके ऊपर चर्म(त्वचा) लपेट दी गयी है । इसी को देख देख कर तूं अपने में गर्व से फूला नहीं समा रहा है कि तेरे समान इस संसार में कोई दूसरा नहीं है ॥६॥ 
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सुन्दर न्हावै बहुत ही, बहुत करै आचार । 
देह माहिं देखै नहीं, भर्यौ नरक भंडार ॥७॥
तूं अपने इस शरीर की सुन्दरता में वृद्धि के लिये प्रतिदिन स्नान करता है; तथा इसके लिये अन्य विधि उपाय भी करता रहता है । परन्तु तूँ इस की यह सचाई नहीं देखता कि इसमें एक मात्र नरक(मैले पदार्थों) का भण्डार ही भरा हुआ है ॥७॥
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सुन्दर अपरस धोवती, चौकै बैठौ आइ । 
देह मलीन सदा रहै, ताही कै संगि खाइ ॥८॥
तूं अस्पृश्य के स्पर्श का पाप मिटाने के लिये स्नान कर, स्वच्छ वस्त्र पहन कर, भोजनालय में चौकी पर बैठ कर इस निरन्तर मलिन रहने वाले देह से ही भोजन करता है - यह तेरी कैसी समझदारी है ! ॥८॥
(क्रमशः) 

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