बुधवार, 24 दिसंबर 2025

प्रेमदास जी को गद्दी ~

*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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११ आचार्य प्रेमदासजी ~ 
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प्रेमदास जी को गद्दी ~ 
वि. सं. १८९८ चैत्र शुक्ला ११ को समाज ने प्रेमदासजी को नारायणा दादूधाम की गद्दी पर विराजमान किया । बीकानेर नरेश ने घोडा, दुशाला आदि टीका के भेजे । इस वर्ष का चातुर्मास रामरतनजी रतिरामजी जयपुर वालों ने मनाया था । अत: आचार्य प्रेमदासजी अपने शिष्य मंडल के सहित वि. सं. १८९८ आषाढ शुक्ला १३ को जयपुर पहुँचे । 
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अपनी परंपरा की मर्यादा के अनुसार जयपुर में प्रवेश करने से पहले जयपुर नरेश को अपने आने की सूचना दी । सूचना मिलने पर जयपुर नरेश ने अपनी ओर से लक्ष्मणसिंहजी नाथावत को आज्ञा दी कि नारायणा दादूधाम के आचार्य पधारे हैं अत: जयपुर राज्य की मर्यादा के अनुसार उनका स्वागत करके नगर में लाओ । 
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तब लक्ष्मणसिंहजी नाथावत राजकीय लवाजमा - हाथी निशान नक्कारे आदि बाजे तथा अन्य स्वागत सत्कार की सामग्री लेकर आचार्य प्रेमदासजी की अगवानी करने आये । भेंट चढाकर प्रणाम की फिर आवश्यक प्रश्‍नोत्तर के पश्‍चात् आचार्यजी को हाथी पर बैठाकर बडे ठाट बाट से संकीर्तन करते हुये नियत मार्ग से रामरतनजी, रतिरामजी के स्थान पर पहुँचा दिया । फिर प्रसाद वितरण करके शोभायात्रा समाप्त कर दी गई । रामरतनजी, रतिरामजी ने आचार्यजी तथा संत मंडल के ठहरने आदि की व्यवस्था पहले ही कर रखी थी । अत: यथायोग्य स्थानों में सबको ठहरा दिया । सत्संग आरंभ हो गया ।
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जयपुर चातुर्मास ~ 
प्रात: दादूवाणी की कथा, मध्यदिन में विद्वानों द्वारा उपनिषद् गीता आदि के प्रवचन, गायक संतों के पदगायन, आरती अष्टक जागरण, संकीर्तन आदि चातुर्मासिक सत्संग मर्यादा पूर्वक बहुत अच्छे रुप से होने लगा । अपने अपने समय पर उक्त कार्यक्रमों में वक्ता श्रोता आदि सत्संग स्थान पर पहुँच कर मर्यादानुसार अपना - अपना कार्य करने लगे । जयपुर की जनता ने सत्संग, संत - सेवा आदि कार्यों में अच्छा भाग लिया । 
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इस चातुर्मास में आचार्य प्रेमदासजी महाराज के दर्शन करने जयपुर की जनता रातदिन आती ही रहती थी । कारण - आचार्य प्रेमदासजी महाराज शांत स्वभाव, शांतिप्रिय, सर्व हितैषी महात्मा थे । उनके दर्शन से जनता को शांति सुख का अनुभव होता था । इससे दर्शनार्थी का आना जाना बना ही रहता था । रामरतनजी, रतिरामजी ने आचार्यजी की तथा अन्य सब संतों की अच्छी सेवा की थी । चातुर्मास समाप्ति पर रामरतनजी, रतिरामजी ने मर्यादानुसार आचार्य जी को भेंट तथा सब संतों को वस्त्र आदि संतुष्ट किया था, और मर्यादा सहित विदा किया था । 
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कहा भी है - 
रामरतन रतिराम ने, राखे बहु दिन गेह ।
वासुदेव कवि ने किये, दर्शन सहित सनेह ॥
(दादू चरित्र चंद्रिका)
फिर मार्ग की जनता को अपने दर्शन सत्संग से कृतार्थ करते हुये नारायणा दादूधाम में पधारे और ब्रह्म भजन करने लगे ।
(क्रमशः) 

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