बुधवार, 24 दिसंबर 2025

*१४. दुष्ट को अंग २३/२५*

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*१४. दुष्ट को अंग २३/२५*
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सुन्दर दुर्जन सारिखा, दुखदाई नहिं और । 
स्वर्ग मृत्यु पाताल हम, देखै सब ही ठौर ॥२३॥
हमने स्वर्ग, नरक एवं पाताल - तीनों लोकों में घूम कर देख लिया; परन्तु दुष्टसङ्ग के समान असह्य दुःख अन्य कोई नहीं मिला ॥२३॥
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देह जरै दुख होत है, ऊपर लागै लौंन । 
ताहू तें दुख दुष्ट कौ, सुन्दर मानै कौंन ॥२४॥
शरीर के जलने पर कष्ट होता है, उस पर नमक छिड़क दिया जाय तो उससे भी अधिक काष्ट होगा; परन्तु इन दोनों कष्टों से भी अधिक कष्ट दुष्ट पुरुष की सङ्गति पाने पर होता है, किन्तु इस कटुसत्य को मानने के लिये कोई तय्यार नहीं होता ॥२४॥
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जो कोउ मारै बान भरि, सुन्दर कछु दुख नांहि । 
दुर्जन मारै बचन सौं, सालतु है उर मांहि ॥२५॥
इति दुष्ट को अंग ॥१४॥
श्रीसुन्दरदासजी महाराज कहते हैं - यदि कोई मुझ को खींच कर बाण मार दे तो मुझे कोई कष्ट न होगा; परन्तु किसी दुष्ट के कहे हुए वचन मेरे हृदय तक पहुँच कर मुझे बहुत कष्ट देते हैं ॥२५॥
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इति दुष्ट का अंग सम्पन्न ॥१४॥
(क्रमशः)

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