🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
.
*१४. दुष्ट को अंग १३/१६*
.
दुष्ट बुरी ही करत है, सुन्दर नैंकु न लाज ।
काम बिगारै और कौ, अपनैं स्वारथ काज ॥१३॥
दुष्ट पुरुष दूसरे के प्रति निरन्तर अशुभ ही चिन्तन करता है, ऐसा करते हुए उसको कोई लज्जा सङ्कोच नहीं होता । वह अपना हित पूरा करने के लिये दूसरे का कार्य तत्काल नष्ट कर देता है ॥१३॥
.
पर कौ काम बिगारि दे, अपनौ होउ न होह ।
यह सुभाव है दुष्ट कौ, सुन्दर तजिये वोह ॥१४॥
दुर्जन का यह स्वभाव बन जाता है कि वह दूसरे का कार्य विनष्ट करने के लिये सतत प्रयत्नशील रहता है, भले ही उसका कार्य सिद्ध हो या न हो । अतः उससे दूर रहना ही श्रेयस्कर है ॥१४॥
.
घर खोवत है आपनौ, औरनि हूं कौ जाई ।
सुन्दर दुष्ट सुभाव यह, दोऊ देत बहाइ ॥१५॥
दुर्जन ऐसे कृत्य करने में भी कोई संकोच नहीं करता कि जिससे दूसरे का स्वार्थ नष्ट होने के साथ उसका भी स्वार्थ नष्ट हो जाय । वह तो दोनों घर नष्ट कर के ही सन्तुष्ट होता है ॥१५॥
.
दुर्जन संग न कीजिये, सहिये दुःख अनेक ।
सुन्दर सब संसार मैं, दुष्ट समान न एक ॥१६॥
सज्जन, घोर सङ्कट आने पर भी दुष्ट पुरुष का सङ्ग न करे; क्योंकि इस संसार में दुष्ट की समता करने वाला कोई नहीं है ॥१६॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें