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*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*१२. विश्वास को अंग २०/२२*
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सुन्दर जाकी सृष्टि यह, ताकै टोटौ कौंन ।
तूं प्रभु के बिस्वास बिन, परै न हांडी लौंन ॥२०॥
श्रीसुन्दरदासजी महाराज कहते हैं - जिस सर्वप्रथम प्रभु ने इतनी विशाल सृष्टिरचना की है, उस के घर में क्या टोटा(धन का अभाव) हो सकता है । यदि तूँ प्रभु पर विश्वास नहीं करेगा तो तुझे अपने घर की हांड़ी में रखने योग्य नमक भी नहीं मिलेगा !१ ॥२०॥ (१ श्रीसुन्दरदासजी के समय में नमक कम से कम मूल्य में खरीदने योग्य कोई खाद्य पदार्थ न रहा होगा, तभी यह उदाहरण दिया है ।)
सुन्दर जिनि प्रभु गर्भ मैं, बहुत करी प्रतिपाल ।
सो पुनि अजहूं करत है, तूं सोधै धनमाल ॥२१॥
श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - जिस सर्वसमर्थ प्रभु ने गर्भावस्था में तेरी रक्षा सावधानीपूर्वक की है, वही आज भी उसी प्रकार तेरी रक्षा कर रहा है ! तो भी, तूँ उसे भूल कर धन-सम्पति के अर्जन में ही लगा हुआ है ! ॥२९॥
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सुन्दर सबकौं देत है. चंच संवानी चौंनि ।
तेरै तृष्णा अति बढी, भरि भरि ल्यावत गौंनि ॥२२॥
वह सिरजनहार प्रभु सभी प्राणियों को, उनके मुख में जा सकने योग्य, खाद्य सामग्री की व्यवस्था अवश्य करता ही रहता है । परन्तु इसके विपरीत, तेरे मन की तृष्णा इतनी अधिक बढ़ गयी है कि तूँ(अपार धन सम्पत्ति के संग्रह हेतु) अपने घर में विक्रय योग्य पदार्थों की गूंण(बोरियाँ) भर भर कर बैलों पर लाद कर ला रहा है ! ॥२२॥
(क्रमशः)

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