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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*१२. विश्वास को अंग ५/८*
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सुन्दर धीरज धारि तूं, गहि प्रभु कौ बिश्वास ।
रिजक बनायौ रामजी, आवै तेरै पास ॥५॥
तूँ उस प्रभु पर अटूट विश्वास रखता हुआ धैर्य धारण किये रह; क्योंकि तेरे लिये निश्चित भोजन उस प्रभु के द्वारा तेरे पास अवश्य पहुँच जायगा ॥५॥
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काहै कौं परिश्रम करै, जिनि भटकै चहुं ओर ।
घर बैठैं ही आइ है, सुंदर सांझ कि भोर ॥६॥
क्यों तूँ व्यर्थ श्रम कर रहा है, या उदरपूर्ति के लिये इधर उधर घूम रहा है ! श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - जो तेरे भाग्य में है वह प्रातः या सायं तेरे पास स्वयं आ जायगा ॥६॥
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रिजक बनायौ रामजी, का पै मेट्यौ जाइ ।
सुंदर धीरज धारि तूं, सहजि रहेगौ आइ ॥७॥
भगवान् ने जो भोजन तुम्हारे निमित्त कर दिया है उसे कोई नष्ट नहीं कर सकता । अतः तूँ धैर्य रख; क्योंकि वह निश्चित ही तुझ को मिल जायगा ॥७॥
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चंच संवारी जिनि प्रभू, चूंन देइगो आंनि ।
सुंदर तूं बिश्वास गहि, छांडि आपनी बांनि ॥८॥
जिस प्रभु ने खाने के लिये यह मुख बनाया है, वह उसके लिये भोजन भी अवश्य भेजेगा । अतः तूं विश्वास रख; और सर्वत्र अपना सन्देह करने का स्वभाव छोड़ दे ॥८॥
(क्रमशः)

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