शनिवार, 7 जुलाई 2012

= स्मरण का अँग २ =(५१-२)

॥ दादूराम-सत्यराम ॥

*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= स्मरण का अंग - २ =*
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*परमार्थ*
*हरि भज साफिल जीवना, पर उपकार समाइ ।*
*दादू मरणा तहाँ भला, जहाँ पशु पंखी खाइ ॥ ५१ ॥* 
दादूजी कहते हैं - हे जिज्ञासुजनों ! मनुष्य देह प्राप्त करके दो काम अवश्य करने योग्य हैं । प्रथम तो अपने जीवन को सफल बनाने के लिए प्रभु का भजन करना चाहिए । पुन: समय अनुकूल दूसरे प्राणधारियों की सेवा करनी चाहिए, क्योंकि परोपकार भी हरि भजन के समान ही आत्म-कल्याण का साधन है एवं मुमुक्षुओं को परोपकार और हरि भजन से मनुष्य-जीवन को सफल बनाना चाहिए । अब परोपकार का स्वरूप कहते हैं कि शरीर का त्याग करना वहाँ सफल है, जहाँ पशु-पक्षी आदि इस पंच-भौतिक देह का भक्षण कर लेवें ॥ ५१ ॥ 
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*स्मरण*
*दादू राम शब्द मुख ले रहै, पीछे लगा जाइ ।* 
*मनसा वाचा कर्मना, तिहि तत सहज समाइ ॥ ५२ ॥* 
हे जिज्ञासुजनो ! सर्व माया-प्रपंच को मन से त्याग कर नाम में ही संलग्न रहो, क्योंकि जितनी भी ऋद्धि-सिद्धि आदिक मायिक विभूतियाँ हैं, वे सभी भगवत् की आज्ञा अनुसारिणी हैं । अर्थात् महाप्रभु व्यावहारिक जिज्ञासुओं के प्रति उपदेश करते हैं कि हे जिज्ञासुजनो ! राम-नाम को ही सब व्यावहारिक कार्यों में मुख्य मान कर व्यावहारिक कार्य करने से सब कामों में सफलता मिलेगी । इसलिए शरीर से व्यवहारिक कार्य करते हुए भी मन, वाणी, कर्म से प्रभु में ही संलग्न रहो और कर्म भी भगवत् निमित्त ही करो । जिससे निष्काम - कर्म - कर्ता पुरुष कर्म - बन्धन से मुक्त रहेगा ॥ ५२ ॥
(क्रमशः)

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