सोमवार, 9 जुलाई 2012

= स्मरण का अँग २ =(५५-६)

॥ दादूराम-सत्यराम ॥

*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= स्मरण का अंग - २ =*
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*ईश्वर विमुख प्राणी की दुर्गति*
*दादू जियरा राम बिन, दुखिया इहि संसार ।* 
*उपजै विनसै खप मरै, सुख दुख बारम्बार ॥ ५५ ॥* 
दादूजी कहते हैं - ईश्वर-विमुख प्राणी इस संसार में जीते हुए तो नाना सकाम और निषिद्ध कर्मों से पच-पच कर मरते हैं और शरीर छूटने के बाद नाना प्रकार के नरक के दु:ख भोगते हैं । उसके बाद अधम योनियों जैसे भूत, प्रेत, सांप, बिच्छू आदि में जन्म-मरण रूप अवागमन के चक्र में घूमते रहते हैं । इसलिए परमेश्वर-विमुख प्राणियों की अति दुर्गति होती है ॥ ५५ ॥ 
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*स्मरण नाम महिमा माहात्मय*
*राम नाम रुचि उपजै, लेवे हित चित लाइ ।*
*दादू सोई जीयरा, काहे जमपुरि जाइ ॥ ५६ ॥* 
पूर्व जन्म के सुकृत कर्मों से मनुष्य शरीर में जन्म लेकर, सत्संग के द्वारा जिस मनुष्य की प्रथम राम-नाम स्मरण में रुचि उत्पन्न होती है और फिर प्रीतिपूर्वक परमेश्वर में चित्त एकाग्र करता है, ऐसा पुरुष क्यों यमलोक में जावेगा अर्थात् यम आदि का त्रास को क्यों भोगेगा ? वह पुरुष तो जरा-मरण रूपी संसार के बन्धनों से मुक्त हो जाएगा ॥ ५६ ॥
(क्रमशः)

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