*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*= स्मरण का अंग - २ =*
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*स्मरण नाम महिमा माहात्म्य*
*दादू उज्वल निर्मला, हरि रंग राता होइ ।*
*काहे दादू पचि मरै, पानी सेती धोइ ॥ ५९ ॥*
दादूजी कहते हैं - हे जिज्ञासुओ ! परमेश्वर के भजन में एक रूप होने से ही यह तन और मन निर्मल होते हैं और ईश्वर भजन को छोड़कर जो तीर्थ, व्रत, आदि सकाम कर्मों से मन को पवित्र करने के प्रयत्न करते हैं, वे व्यर्थ ही पच-पच कर मरते हैं ॥ ५९ ॥
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*शरीर सरोवर राम जल, माहीं संजम सार ।*
*दादू सहजैं सब गए, मन के मैल विकार ॥ ६० ॥*
हे जिज्ञासुओ ! मनुष्य का शरीर ही मानो मानसरोवर रूपी तीर्थ है । मानसरोवर में जैसे अमृत तुल्य जल भरा होता है, वैसे ही अन्त: करण में भी मानो निष्काम राम-नाम का स्मरणरूपी जल भरा है और संयम कहिए बाहर के शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध, इन पाँचों विषयों से मन और इन्द्रियों को अन्तर्मुख करके अर्थात् राम-नाम में मन लगाना ही मानो स्नान है । सब तीर्थों से यह सार तीर्थ है । इसका स्नान सम्पूर्ण पापों और तापों को शान्त करने वाला है ॥ ६० ॥
(क्रमशः)
(क्रमशः)
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