*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*= स्मरण का अंग - २ =*
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*दादू रामनाम जलं कृत्वां, स्नानं सदा जित: ।*
*तन मन आत्म निर्मलं, पंच - भू पापं गत: ॥ ६१ ॥*
दादूजी कहते हैं - हे जिज्ञासुओ ! प्रभु के नाम-स्मरण को जल समझ करके इन्द्रियों का दमन रूप स्नान करो । जिससे श्रोत्र, नेत्र, घ्राण, जिह्वा, त्वचा ये पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं, इनसे "भू" नाम उत्पन्न हुए जो विषय और कामादि विकार उत्पन्न होते हैं, वे पाप "गत:" कहिए, नष्ट होकर शुद्ध हो जाती है । अथवा पंच भूप यानी पांचों ज्ञानेन्द्रियाँ हरि भजन से अपंगत: अर्थात् निर्जव व निर्वासनिक हो जाती हैं जिससे तन, मन, आत्मा आदि सभी निर्मल हो गये हैं ॥ ६१ ॥
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*दादू उत्तम इन्द्री निग्रहं, मुच्यते माया मन: ।*
*परम पुरुष पुरातनं, चिंतते सदा तन ॥ ६२ ॥*
हे जिज्ञासु ! तूं उत्तम मनुष्य-शरीर प्राप्त करके अब इन्द्रियों का निग्रह कर । जिससे तेरा मन माया के प्रपंच से छुटकारा पाकर, तूं देह अध्यास से मुक्त हो जाएगा और पुरातन कहिए, अनादि जो परम पुरुष परमेश्वर है, उसका चिंतन कर, जिससे तूं उसे ही प्राप्त करेगा ॥ ६२ ॥
(क्रमशः)
(क्रमशः)
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