गुरुवार, 19 जुलाई 2012

= स्मरण का अँग २ =(७४/५)

॥ दादूराम-सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी

साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= स्मरण का अंग - २ =*
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*लय लगाने की विधि*
*प्राण कवल मुख राम कहि, मन पवना मुख राम ।*
*दादू सुरति मुख राम कहि, ब्रह्म शून्य निज ठाम ॥ ७४ ॥* 
दादूजी कहते हैं - हे जिज्ञासुओ ! अपने प्राण, मन और सुरति, ये सब सदैव ब्रह्म की ओर लगे रहें । सो ब्रह्म कैसा है ? वह ब्रह्मशून्य कहिए निर्विकार और सत्चित् आनन्द घन, जहाँ मायावी पाखंड और प्रपंच का अत्यन्त अभाव है । ऐसा जो ब्रह्म है, वह जिज्ञासुजनों का आत्मस्वरूप ही है । इसलिए प्रतिक्षण में उसका स्मरण करना चाहिए ॥ ७४ ॥ 
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*दादू कहतां सुणातां राम कह, लेतां देतां राम ।* 
*खातां पीतां राम कह, आत्म कवल विश्राम ॥ ७५ ॥* 
सतगुरु महाराज आज्ञा करते हैं कि जिज्ञासुजनों को राम नाम का आधार रख करके ही मन, वाणी शरीर का सम्पूर्ण व्यवहार करना चाहिए । आत्मानन्द को अनुभव करने का यही एक उत्तम साधन है ॥ ७५ ॥
(क्रमशः)

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