*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*= स्मरण का अंग - २ =*
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*स्मरण*
*मन पवना गहि सुरति सौं,दादू पावै स्वाद ।*
*सुमिरण माहिं सुख घणा, छाड़ि देहु बकवाद ॥ ७२ ॥*
दादूजी कहते हैं - हे जिज्ञासुओ ! "सुरति' कहिए मन की वृत्ति को राम-नाम में एकाग्र करके, मन को वश में करना चाहिये । मन, सुरति और श्वास इन तीनों को एकाग्र करके, राम-नाम का स्मरण करो । इसी से जिज्ञासु परमानन्द का आस्वादन लेते हैं, क्योंकि राम-नाम के स्मरण में ही सुख है । इसलिए सम्पूर्ण "बकवाद" कहिए, माया प्रपंचों को त्याग करके एक राम-नाम में ही मन को एकाग्र करो ॥ ७२ ॥
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*माया प्रपंच का त्याग*
*नाम सपीड़ा लीजिए, प्रेम भगति गुण गाइ ।*
*दादू सुमिरण प्रीति सौं, हेत सहित ल्यौ लाइ ॥ ७३ ॥*
हे जिज्ञासुओ ! परमेश्वर के नाम को विरह-पूर्वक लेना चाहिए और प्रेम व श्रद्धा से प्रभु के गुणानुवाद गाओ । अपनी जिह्वा से प्रभु के नाम के बिना और कोई भी नाम नहीं लेना चाहिए । इसलिए अन्त: करण की प्रीति से प्रभु का स्मरण कीजिए और प्रेमपूर्वक उसी में अपने मन को लगाओ ॥ ७३ ॥
(क्रमशः)
(क्रमशः)
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