गुरुवार, 5 जुलाई 2012

= स्मरण का अँग २ =(४७-८)

॥ दादूराम-सत्यराम ॥

*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= स्मरण का अंग - २ =*
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*मन परमोध*
*दादू राम कहे सब रहत है, नखसिख सकल सरीर ।*
*राम कहे बिन जात है, समझि मनवां वीर ॥ ४७ ॥* 
ब्रह्मर्षि दादू दयाल महाराज अपने मन को उपलक्ष करके कह रहे हैं । हे भाई मन ! तूं समझ कि राम - नाम का भजन करने से नख से शिखा पर्यन्त जो शरीर और इन्द्रियाँ हैं, वे विषय - विकारों से रहित होती हैं और राम - स्मरण नहीं करने से अपने - अपने विषय - विकारों में लीन रहती हैं । इसलिए हे मन ! अब राम - नाम का स्मरण कर जो परमेश्वर सर्वत्र व्यापक है । इस शरीर में उसकी सत्ता नख से चोटी पर्यन्त विद्यमान है । उसके विचारने से यह शरीर सफल होता है और नाम - स्मरण के बिना तो यह जीवन व्यर्थ ही जाता है । हे मन भाई ! नख से चोटी पर्यन्त जो देहाध्यास व्याप्त हो रहा है, उससे तूं राम - नाम के स्मरण द्वारा मुक्त हो । राम - नाम के स्मरण के बिना मनुष्य - जीवन देहाध्यास में ही बीता जा रहा है ॥ ४७ ॥ 
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*दादू राम कहै सब रहत है, लाहा मूल सहेत ।* 
*राम कहे बिन जात है, मूरख मनवां चेत ॥ ४८ ॥* 
हे जिज्ञासुओ ! राम के भजन से ही ब्याज सहित मूल की रक्षा होती है, अर्थात् यह लोक और परलोक दोनों सफल हो जाते है और राम - भजन के बिना मनुष्य का यह जीवन निष्फल ही जा रहा है । इसलिए हे जिज्ञासुओ ! अपने इस मन को सावधान करके प्रभु के स्मरण में लगाओ । हे मूर्ख मन ! तूं सावधान होकर प्रभु का स्मरण कर, इसी में तेरा कल्याण है ॥ ४८ ॥
(क्रमशः)

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