*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*= स्मरण का अंग - २ =*
*= स्मरण का अंग - २ =*
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*दादू हरि का नाम जल, मैं मीन ता माहिं ।*
*संगि सदा आनन्द करै, बिछुरत ही मर जाहिं ॥१००॥
हे जिज्ञासुओं ! हरि का नाम तो जलवत् है और भक्तजन उसमें मछली रूप हैं । जब तक यह भक्तों का मन रूप मछली, हरि नाम रूपी जल के साथ है, तब तक वह सुखी रहते हैं और राम-नाम स्मरण से जब उनकी मनरूपी मछली विलग होती है, तब मृतक तुल्य हो जाते हैं । जैसे मछली जल में सुख से विचरती है और जल से अलग होते ही प्राण दे देती है, ऐसे ही परमेश्वर के भक्तों को भी राम-नाम स्मरण में पतिव्रत रख कर प्रभु का स्मरण करना चाहिए ॥१००॥
"रज्जब" नांव निरंजन नीर है, महामुनि मन मीन ।
सुख सागर माहीं सुखी, दुखी दीरघ जब भिन्न ॥
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*दादू राम बिसार कर, जीवैं किहिं आधार ।*
*ज्यूं चातक जल बूँद को, करै पुकार पुकार ॥१०१॥*
हे जिज्ञासुजनों ! राम का सच्चा भक्त, राम के स्मरण को छोड़कर किसके आसरे जीवित रह सकता है अर्थात् वह फिर नहीं जीवित रहता । जैसे पपैया पक्षी स्वाति नक्षत्र की जल बूँद के लिए पुकारता रहता है, जब उस नक्षत्र में पानी बरसे, उसी पानी को पपैया ग्रहण करता है, फिर उसको साल भर के लिए प्यास नहीं लगती है । पपैया का उस बूँद से पतिव्रत है, दूसरी नहीं पीता । ऐसे ही हरिभक्तों का राम-नाम स्मरण से पतिव्रत है । वे स्मरण को छोड़कर, किसी के आसरे जीवित रहें अर्थात् जीवित नहीं रह सकते ॥ १०१ ॥
पपैया ऊँची जात का, नवै व नीचा नीर,
कै जांचै सुरईश ही, कै दु:ख सहै सरीर ॥
उड़ते लगा बाण, पारधी अंग में,
पड़ते करी संभाल, पपैया गंग में ॥
लीनी चोंच उठाय, न छाड़ी टेक रे ।
"हरिदास" हरि जन सु ऐसा कोइ एक रे ॥
(क्रमशः)
(क्रमशः)
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