शनिवार, 28 जुलाई 2012

= स्मरण का अँग २ =(१०२/३)

॥ दादूराम-सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
*
*= स्मरण का अंग - २ =*
.
*हम जीवैं इहि आसरे, सुमिरण के आधार ।* 
*दादू छिटके हाथ थैं, तो हमको वार न पार ॥१०२॥* 
सतगुरुदेव उपदेश करते हैं कि परमेश्वर के सम्पूर्ण भक्तों के जीवन का आधार केवल राम-नाम का स्मरण ही है । यदि हरि भक्तों की सुरति हृदय में स्मरण से अलग हो जावें, तो इस लोक के और परलोक के तथा जन्म-जन्मान्तरों के जो सुकृत कहिए, पुण्य कर्म है, वे सभी शीतल हो जाएंगे और वार न पार कहिए, इस दु:ख रूप संसार-समुद्र से परमात्मा से विमुख प्राणी पार नहीं जा सकते । अत: इन संसार दु:खों से छुटकारा पाने के लिए जिज्ञासुओं को परमेश्वर में निष्ठा रखनी चाहिए ॥१०२॥
.
*पतिव्रत निष्काम स्मरण*
*दादू नाम निमित रामहि भजै, भक्ति निमित भजि सोइ ।* 
*सेवा निमित सांई भजै, सदा सजीवन होइ ॥१०३॥*
हे जिज्ञासुओं ! तुम नाम-स्मरण रस को पान करना चाहते हो तो राम का ही स्मरण करो और भक्ति चाहते हो तो नवधा भक्ति के द्वारा भक्ति करो । और सेवा चाहते हो तो आपा, गर्व, गुमान, मद, मत्सरता और अहंकार इन सबको छोड़ो । हरि, गुरु, सन्त विद्वान् इनके सामने गरीबी कहिए, नम्रता को धारण करो, यही परमेश्वर की सेवा है । इस प्रकार कायिक, वाचिक और मानसिक तीनों प्रकार से परमेश्वर की शरण ग्रहण करो । यही जीवनमुक्त अवस्था को प्राप्त करने का साधन है ॥१०३॥ 
नांव सोई सुमिरण करै, भक्ति भजै भगवंत । 
नेम तप निष्काम है, पावै पूरण कंत ॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें