गुरुवार, 26 जुलाई 2012

= स्मरण का अँग २ =(९७/९)

॥ दादूराम-सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= स्मरण का अंग - २ =*
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*स्मरण नाम विरह*
*दादू जगत सुपना ह्वै गया, चिंतामणि जब जाइ ।*
*तब ही साचा होत है, आदि अंत उर लाइ ॥ ९७ ॥* 
हे जिज्ञासु ! जब चिन्तामणि रूप ब्रह्मतत्व की प्राप्ति हो जाती है, तो यह जागृत अवस्था फिर स्वप्नवत् प्रतीत होने लगती है अर्थात् स्वप्न अवस्था की भाँति सांसारिक पदार्थ मिथ्या फिर प्रतीत होने लगते हैं और जब जिज्ञासु राम-नाम को भूल जाता है, तो वह जीवित ही मृतक तुल्य रहता है, क्योंकि जीने की सफलता तो राम-नाम के स्मरण में ही है, इसलिए जन्म से मृत्यु पर्यन्त मन को राम के स्मरण में एकाग्र किए रहो ॥ ९७ ॥ 
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*नांव न आवै तब दुखी, आवै सुख संतोष ।*
*दादू सेवक राम का, दूजा हर्ष न शोक ॥ ९८ ॥* 
हे जिज्ञासु ! जब तक यह मानव राम-नाम के स्मरण की शरण ग्रहण नहीं करता है, तब तक यह सांसारिक प्राणी दुखी रहता है और जब वह राम-नाम के स्मरण का आसरा लेता है, उस समय यह जीवात्मा सुखी और सन्तुष्ट होता है । जो मानव राम-नाम स्मरण का सच्चा प्रेमी है, उसको हर्ष, शोक आदि का कुछ भान नहीं होता ॥ ९८ ॥ 
विपदो नैव विपद: सम्पदो नैव सम्पद: । 
विपद् विस्मरणं विष्णो सम्पद्नारायण-स्मृति ॥ 
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*मिले तो सब सुख पाइये, बिछुरे बहु दु:ख होइ ।* 
*दादू सुख दु:ख राम का, दूजा नाहीं कोइ ॥ ९९ ॥* 
ब्रह्मर्षि उपदेश करते हैं कि हे जिज्ञासुओें ! जब तक यह जीवात्मा परमेश्वर से विमुख रहता है, तब तक इसको नाना सांसारिक कष्ट महसूस होते रहते हैं और जब परमेश्वर में एकाग्र बुद्धि होती है, तब इसको सम्पूर्ण आनन्द प्राप्त हो जाता है । इसलिए यह सारा दु:ख और सुख तो राम की अप्राप्ति और प्राप्ति में भक्तों को होता है, अन्य किसी भी पदार्थ में सुख और दु:ख उनको नहीं व्यापता है । इसलिए परमेश्वर की प्राप्ति के लिए राम-नाम के स्मरण में एकाग्र रहो ॥ ९९ ॥
(क्रमशः)

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