रविवार, 29 जुलाई 2012

= स्मरण का अँग २ =(१०४/६)

॥ दादूराम-सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी

साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= स्मरण का अंग - २ =*
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*नाम सम्पूर्णता*
*दादू राम रसाइन नित चवै, हरि है हीरा साथ ।* 
*सो धन मेरे साइयां, अलख खजाना हाथ ॥१०४॥* 
सतगुरुदेव से किसी वादी ने प्रश्न किया था, इस साखी से उसको उत्तर दिया है । हे भाई ! राम का भजन रूपी रसायन हमारे यहाँ नित्य ही बनता है और हरिराम रूपी हीरा, सदा हमारे अन्त:करण में रहता है । सबका पालन करने वाला स्वामी परमेश्वर ही हमारे धन का भंडार है । और मन वाणी का अविषय जो अलख, वह हमारी बुद्धि में स्थित है । इसलिए हम सुखी रहते हैं ॥१०४॥ 
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*हिरदै राम रहै जा जन के, ताको ऊरा कौण कहै ।* 
*अठ सिधि, नौ निधि ताके आगे, सनमुख सदा रहै ॥१०५॥* 
हे जन ! जिस हरि-भक्त के हृदय में राम का स्मरण रहता है, उसके किस चीज की कमी रहे ? कोई भी कमी नहीं रहती, क्योंकि आठों सिद्धि और नौ निधि सदैव उस भक्त के सामने, राम-नाम स्मरण के प्रताप से, हाथ जोड़कर खड़ी रहती हैं ॥१०५॥ 
अष्ट सिद्धि - 
अणिमा महिमा चैव गरिमा लधिमा तथा । 
प्राप्ति: प्राकाम्यमींशित्वं चाष्टसिद्धय: ॥ 
नव निधि - 
महापद्मश्च पद्मश्च शंखो मकर-कच्छपौ । 
मुकुन्दकुन्दनीलाश्च खर्वश्च निधयो नव ॥ 
बालद ढारि कबीर के, दादू गेटोलाव । 
भारद्वाज मुनि प्रयाग में, भरत जिमायो साव ॥ 
द्रष्टांत :- राम नाम स्मरण के प्रताप से कबीर के यहाँ तीन दफा भगवान् सब सामान की बालद भर-भर के लाए और दादू दयाल महाराज जब बादशाह अकबर को उपदेश देकर घूमते-घूमते दौसा नगर में गेटोलाव बांध पर आकर बिराजै, तब संत बोले :- महाराज ! भूख लगी है । तो ब्रह्मर्षि ने प्रकृति कहिए, माया को आज्ञा दी ।
प्रकृति को आज्ञा फरमाई, जलेबी ताजा मँगवाई ।
(दयानिधि अष्टक)
तालाब में से प्रकृति माता गर्म-गर्म जलेबियों की टोकरी कमल के पत्तों से ढक कर महाराज के सामने ला रखी और प्रणाम किया । महाराज ने पूछा :- माता जी क्या लाई हो ? आपकी आज्ञानुसार जलेबी लाई हूँ । जलेबी संतों को जिमा दो । जीमने से जब जलेबी टोकरी में बच गई, तब ब्रह्मर्षि ने आज्ञा दी कि ये जहाँ से लाई हो वहीं ले जाओ । वैसा ही राम-भक्त भरत जी सपरिवार और अयोध्या की जनता का साथ लेकर जब राम जी के पास चित्रकूट जा रहे थे, मार्ग में प्रयागराज पड़ा । तीर्थ में सभी ने स्नान किया और भारद्वाज मुनि के दर्शन किये तो भारद्वाज मुनि बोले :- आज की रात भरत जी यहीं विश्राम करो । उनकी सेवा के लिए मुनि के संकल्प मात्र से माया ने सम्पूर्ण पदार्थ रच दिये । जिसके हृदय में राम-भक्ति होती है, उनके सम्पूर्ण काम स्वत: ही सिद्ध हो जाते हैं । 
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*वंदित तीनों लोक बापुरा, कैसे दर्श लहै ।* 
*नाम निसान सकल जग ऊपर, दादू देखत है ॥१०६॥* 
हे जिज्ञासुजनों ! राम का स्मरण करने वाले जो राम के सच्चे भक्त हैं, उन्हें त्रिलोकी के प्राणी मात्र "बन्दित" कहिए नमस्कार करते हैं और उनके दर्शन हमको कैसे होंगे ? क्योंकि वे भक्त परमात्मा का नाम रूपी "निसान कहिए" झंडे को लिए हुए अर्थात् नाम को धारण किए हुए, उसी नाम को रात-दिन ज्ञान विचार रूपी नेत्रों से देखते रहते हैं, अर्थात् स्मरण करते हैं, सतगुरु महाराज कहते हैं कि हे जिज्ञासुओं ! हम तो इसी राम-नाम को रात-दिन स्मरण करते हैं, आप लोग भी इसी का स्मरण करो । वही समस्त त्रिलोकी में माननीय है ॥१०६॥
(क्रमशः)

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