*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*= स्मरण का अंग - २ =*
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*दादू सब जग नीधना, धनवंता नहीं कोइ ।*
*सो धनवंता जाणिये, जाके राम पदार्थ होइ ॥१०७॥*
हे जिज्ञासु ! सम्पूर्ण जगत् के प्राणी निर्धन हैं, और कहाँ तक कहें ? इन्द्र कुबेर आदि देवता को भी निर्धन ही कहना चाहिए, क्योकिं राम नाम रूपी धन से जिसका हृदय शून्य है, वह कोई भी धनवान् नहीं है । वही त्रिलोकी में धनवान् है, जिन्होंने अपने अन्त:करण में नाम-स्मरण रूपी धन का संचय किया है । इसलिए यह मनुष्य का परम कर्तव्य है कि राम-नामधन को एकत्र करे । इसी से कल्याण होगा । क्योंकि जन्म-जन्मान्तरों की दरिद्रता कहिए, रामधन की अप्राप्ति रूपी दरिद्रता सब नष्ट हो जाती है और जीव राम रूप बन जाता है ॥ १०७ ॥
सकल भुवनमध्ये निर्धनास्तेsपि धन्या:,
निवसति हृदि तेषां श्री हरेर्भक्तिरेका ।
हरिरपि निजलोकं सर्वथाततो विहाय,
प्रविशति हृदि तेषां भक्तिसुत्रो पबद्ध: ॥
- भागवत
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*संगहि लागा सब फिरै, राम नाम के साथ ।*
*चिंतामणि हिरदै बसै, तो सकल पदार्थ हाथ ॥१०८॥*
हे जिज्ञासुओं ! समस्त सांसारिक वैभव राम-नाम की ही महिमा से संसार में व्याप्त है । इसलिए राम-नाम ही मानो चिंतामणि हीरा है और यह चिंतामणि रूपी हीरा जिसके हृदय में हैं, उसके पास में संसार के समस्त पदार्थ निवास करते हैं, अर्थात् उसके संकल्प मात्र से ही सब कुछ होता है ॥१०८॥
अच्युत: कल्पवृक्षोsसौ अनन्त: कामधेनुक: ।
चिन्तामणिश्च गोविन्दो हरेनमि विचिन्त येत् ॥
अच्युत: कल्पवृक्षोsसौ अनन्त: कामधेनुक: ।
चिन्तामणिश्च गोविन्दो हरेनमि विचिन्त येत् ॥
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*दादू आनन्द आत्मा, अविनाशी के साथ ।*
*प्राणनाथ हिरदै बसै, तो सकल पदार्थ हाथ ॥१०९॥*
हे जिज्ञासुओ ! जो जीवात्मा परमेश्वर से एकाग्र बुद्धि हो रहा है, वह आनन्द स्वरूप ही है, क्योंकि जिज्ञासु के हृदय में परमेश्वर निवास करते हैं, उनकी आज्ञा में समस्त पदार्थ हैं । अर्थात् जिज्ञासु की भगवद् बुद्धि होने पर समस्त जगत् प्रपंच, उसको भगवत् स्वरूप ही प्रतीत होता है ॥१०९॥
(क्रमशः)
(क्रमशः)
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