रविवार, 15 जुलाई 2012

= स्मरण का अँग २ =(६९/७१)

॥ दादूराम-सत्यराम ॥

*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= स्मरण का अंग - २ =*
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*स्मरण नाम महिमा माहात्म्य*
*दादू राम नाम निज मोहनी, जिन मोहे करतार ।* 
*सुर नर शंकर मुनि जना, ब्रह्मा सृष्टि विचार ॥ ६९ ॥* 
दादूजी कहते हैं - हे जिज्ञासुजनों ! राम-नाम स्मरण, मन को निग्रह करने का अति उत्तम साधन है । राम-नाम के स्मरण से परमेश्वर प्रसन्न होते हैं, इसलिए राम-नाम की महिमा अपार है । राम-नाम के स्मरण से सुर, देवता, नारद आदि, सृष्टि रचयिता ब्रह्मा, शंकर महादेव, मुनिजन आदि से लेकर राम-नाम के प्रभाव से सभी मोहित हो जाते हैं । तथा इस नाम की महिमा सभी देवगण और मुनिजन गाते-गाते थक रहे हैं । किसी ने भी राम के नाम तथा राम के स्वरूप का अन्त नहीं पाया है । इसी से यह राम-नाम अति मोहिनी मंत्र है ॥ ६९ ॥
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*दादू राम नाम निज औषधि, काटै कोटि विकार ।* 
*विषम व्याधि थैं ऊबरै, काया कंचन सार ॥ ७० ॥* 
इसकी प्रत्यक्ष महिमा देखो कि "राम नाम निज औषधि' कहिए, राम-नाम मन के अज्ञान आदि सम्पूर्ण रोगों की दवा है । फिर जन्म-जन्मान्तरों के विषय-वासना रूपी रोगों को भी दूर करती है और शरीर में जीव-बुद्धि को भी नाम का स्मरण, स्वर्ण के समान शुद्ध बना देता है । जन्म-मरण रूप "विषम' व कठिन व्याधि से भी जीवात्मा को मुक्त कर देता है ॥ ७० ॥ 
- राम नाम सी जगत में, औषधि नाहीं कोई ।
जगन्नाथ मन विष हरै, तन अजरावर होइ ॥ 
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*दादू निर्विकार निज नांव ले, जीवन इहै उपाय ।* 
*दादू कृतमम् काल है, ताके निकट न जाय ॥ ७१ ॥* 
परमेश्वर निराकार, निर्गुण स्वरूप है । इसलिए निष्काम वृत्ति से प्रभु का नाम स्मरण करो अथवा परमेश्वर के नाम को मन के विषय-विकारों को हटा कर लेना चाहिये । मनुष्य जन्म को सार्थक बनाने का यही एक श्रेष्ठ साधन है । "कृतम्' कहिए पूर्व जन्मकृत या मायाकृत जो ब्रह्मलोक पर्यन्त माया की विभूति है, वह जिज्ञासुजनों के लिए काल रूप और विनाशकारी है । इसलिए उन जिज्ञासुओं को मायावी पदार्था की तनिक मात्र भी इच्छा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि सम्पूर्ण माया-प्रपंच परमेश्वर के स्मरण में बाधक हैं ॥ ७१ ॥
(क्रमशः)

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