मंगलवार, 14 अगस्त 2012

= विरह का अँग ३ =(१३-१५)

॥ दादूराम-सत्यराम ॥

*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= विरह का अंग - ३ =*
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*पीव बिन पल पल जुग भया, कठिन दिवस क्यों जाइ ।* 
*दादू दुखिया राम बिन, काल रूप सब खाइ ॥१३॥* 
सतगुरूदेव कहते हैं कि अपने प्रीतम, प्यारे, परमेश्वर के दर्शनों के बिना विरहीजनों को एक-एक पल युगों के समान बीतता है । इसलिए विरहीजनों को यह बड़ा दु:ख है कि ये कठिन दिवस प्रभु के वियोग में किस तरह काटेंगे ? क्योंकि संसार के विषय-भोग कालरूप होकर विरहीजनों को संतप्त कर रहे हैं ॥१३॥ 
रज्जब रुचै न राम बिन, सकल भाँति के सुख । 
भगवत सत भावैं सबै, नाना विधि के दु:ख ॥ 
मित्र तिहारे दरस को, अधर रहै जिय आय । 
कहो क्या आज्ञा होत है, यह तन रहे कि जाय ॥ 
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*दादू इस संसार में, मुझसा दुखी न कोइ ।*
*पीव मिलन के कारणै, मैं जल भरिया रोइ ॥१४॥*
विरहीजन कहते हैं कि इस संसार में हमारे समान और कोई भी दु:खी नहीं है, क्योंकि अपने प्रीतम के दर्शनों के बिना अति दु:खी होकर हम रात-दिन रो रहे हैं ॥१४॥ 
पानां ज्यूं पीली भई, लोग कहैं पिण्ड रोग । 
छाने लंघण नित करुं, राम तिहारे जोग ॥ - मीरा
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*ना वह मिलै, न हम सुखी, कहो क्यों जीवन होइ ।*
*जिन मुझको घायल किया, मेरी दारु सोइ ॥१५॥* 
विरहीजन कहते हैं कि जब तक हमें प्यारे प्रीतम नहीं मिलते, तब तक हम सुखी कैसे रहें ? क्योंकि बिना परमेश्वर-दर्शन पाए तो हमारा जीवन ही वृथा है अर्थात् विरहीजनों को परमेश्वर के वियोग का ही दु:ख है और परमेश्वर के दर्शनों का संयोग ही परम आनन्द है ॥१५॥ 
जो मोहि वेदन वैद्य सुनि, लिखी न कागद माँही । 
क्या ढंढारे पोथियां, पचे तो पावे नाहिं ॥ 
जाहु बैद घर आपणे, जाणी जाइ न कोइ । 
जिन दुखलाया "नानका", भला करेगा सोइ ॥ 
कांई ढीलै पोथियां, पचै तो पावै नाहिं । 
मौत न वेदन विरह दी, लिखी न पुस्तक माहिं ॥ 
विरह विथा जाके लगी, ताही पै जु बुझन्त । 
ज्यूं धवल ध्वज पवन वश, उरझ उरझ सुरझंत ॥ 
(क्रमशः)

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