॥ दादूराम-सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*= विरह का अंग - ३ =*
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*दादू हरदम मांहि दिवान, कहूँ दरुने दर्द सौं ।*
*दर्द दरुने जाइ, जब देखूँ दीदार कों ॥२८॥*
सतगुरुदेव प्रार्थना करते हैं कि प्रतिक्षण अपने पीव के प्रेम में ही विरहीजन, अपने शरीर आदि की सुध-बुध भूल कर मस्त हो रहे हैं और मानसिक व्यथा सहित परमेश्वर का विलाप करते हैं । इसी से हम विरहीजन अपने प्राणनाथ के दर्शन देखें, तो हमारी अन्तर्वेदना दूर होवे । हे प्रभु ! विरहीजनों को अपना दर्शन दीजिए ॥२८॥
पीवजी तुम बिन जीव, तपै दिन रात है ।
कहैं कौन पतियाय, दुखी बिललात है ।
भर भादव की रैंन, दमकै दामिनी ।
अरे हां बाजींद, जाको पीव परदेश, भरै क्यों भामिनी ॥
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*विरह विनती*
*दादू दरूने दर्दबंद, यहु दिल दर्द न जाइ ।*
*हम दुखिया दीदार के, महरबान दिखलाइ ॥२९॥*
सतगुरुदेव कहते हैं कि उत्तम भक्तों के हृदय में ऐसी विरह वेदना है, जो दिल से दूर नहीं हो सकती है । हम तो भगवत्-दर्शनों के ही विरही हैं । इसलिए हे दयामय ! हमको अपना दर्शन देओ ॥२९॥
देहु मौज दीदार की, लेहु न याको अंत ।
चातक बोलहि चहुँ दिशा, निशा अंधेरी, न कंत ॥
(चहुं दिसा = चारों अवस्थाओं में)
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*मूये पीड़ पुकारतां, बैद न मिलिया आइ ।*
*दादू थोड़ी बात थी, जे टुक दर्श दिखाइ ॥३०॥*
सतगुरुदेव कहते हैं कि हे नाथ ! हम विरहीजन तो विरह विलाप करते-करते आपके विरह के वियोग में मर रहे हैं, किन्तु हम विरहीजनों के भगवद् विरह रूप या जन्म-मरण दु:ख को दूर करने वाला कोई वैद्य नहीं मिला है ।(कोई वैद्य रूप गुरु नहीं मिला) । हे प्राणाधार ! आपके लिये तो यह साधारण सी बात है कि आप प्रकट होकर हम विरहीजनों को दर्शन देवें । किन्तु हे स्वामिन् ! हम विरहीजनों को तो अति ही कठिन है ॥३०॥
जैसे नारी नाह बिन, भूली सकल श्रृंगार ।
त्यूं रज्जब भूला सकल, सुन स्नेही दिलदार ॥
(नाह = पति, भूली सकल = सर्व सांसारिक बातें ।)
(क्रमशः)
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