शनिवार, 4 अगस्त 2012

= स्मरण का अँग २ =(११९-२०)

॥ दादूराम-सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= स्मरण का अंग - २ =*
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*स्मरण नाम चितावणी*
*दादू सिर करवत बहै, बिसरे आत्म राम ।*
*मांहि कलेजा काटिये, जीव नहीं विश्राम ॥११९॥* 
*दादू सिर करवत बहै, राम हिरदै थैं जाइ ।* 
*माँहि कलेजा काटिये, काल दसों दिसी खाइ ॥१२०॥* 
हे जिज्ञासुओं ! जिस प्रकार सिर पर करवत चलने से अनन्त पीड़ा होती है और कलेजा कटने से तो अत्यन्त बेचैनी होती है । उसी प्रकार राम नाम को बिसार कर संसारीजन अशान्त और दु:खी हैं । अत्यन्त व्यथित एवं अशान्त क्यों है ? इसका हेतु कहते हैं कि "काल दसों दिसि खाइ" - अर्थात् दशों इन्द्रियाँ, शब्द, स्पर्श इत्यादिक काल रूप विषय हैं, उनमें इन्द्रियों की आसक्ति हो रही है । अथवा जब संसारीजन राम-नाम से विमुख होते हैं, तब उनको वह चौरासी की योनी वृक्ष आदि मिलती है । जिनके मस्तिष्क पर काल करवत चलाई जाती है, तब वे अति दुखी होते हैं ॥११९-१२०॥
(क्रमशः)

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