रविवार, 5 अगस्त 2012

= स्मरण का अँग २ =(१२१-२२)

॥ दादूराम-सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= स्मरण का अंग - २ =*
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*दादू सिर करवत बहै, अंग परस नहीं होइ ।* 
*मांहि कलेजा काटिये, यहु बिथा न जाणै कोइ ॥१२१॥* 
*दादू सिर करवत बहै, नैनहूँ निरखै नांहि ।*
*मांहि कलेजा काटिये, साल रह्या मन मांहि ॥१२२॥* 
सतगुरु देव कहते हैं कि हे जिज्ञासुजनों ! जब तक तुम्हारा "अंग" कहिए, मन, नाम-स्मरण के द्वारा परमात्मा में लीन नहीं होता है, तब तक तुम्हें नाना प्रकार के संसार के कष्ट व्याप्त होंगे । किन्तु यह "बिथा" कहिए, परमेश्वर का वियोगरूपी दु:ख भक्तों के अतिरिक्त और दूसरा कोई नहीं जानता है । क्योंकि संसारीजन जब तक विवेक-विचार रूपी नेत्रों ने "निरखै" कहिए, आत्मा और अनात्मा का ज्ञान प्राप्त नहीं करते हैं, तब तक उनको यथार्थ "कष्ट" कहिए, दु:ख प्रतीत नहीं होता है । क्योंकि सांसारिक दु:खों को ही वे सुख मान बैठे है और उन्होंने अमूल्य मनुष्य-जन्म प्राप्त करके भी आत्मा का साक्षात्कार नहीं किया है । इसलिए उत्तम जिज्ञासुओं के हृदय में यह भारी दु:ख रहता है ॥१२१-१२२॥
(क्रमशः)

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