सोमवार, 6 अगस्त 2012

= स्मरण का अँग २ =(१२३-४)

॥ दादूराम-सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
.
*= स्मरण का अंग - २ =*
.
*नाम चिंतन के फलाफल का विवेचन*
*जेता पाप सब जग करै, तैता नाम बिसारे होइ ।* 
*दादू राम संभालिये, तो येता डारे धोइ ॥१२३॥* 
*दादू जब ही राम बिसारिये, तब ही मोटी मार ।* 
*खंड खंड कर नाखिये, बीज पड़ै तिहिं बार ॥१२४॥* 
हे जिज्ञासुओं ! राम-नाम के भूलने से अत्यन्त दु:ख है, क्योंकि राम-नाम बिसारने से "बीज" कहिए, दुर्वासना आदि संस्कार संसारीजनों में व्याप्त हो जाते हैं । जिससे फिर यह जीवात्मा "खंड-खंड" कहिए, जन्म-मृत्यु के चक्र में भटकता रहता है । हे जिज्ञासुओं ! राम नाम को भूलने से ही अत्यन्त दु:ख होता है, जैसे:- "विद्युत" कहिए वज्रपात होने से मनुष्य के शरीर का टुकड़ा-टुकड़ा होकर भस्म हो जाता है वैसे ही राम-नाम का स्मरण भूल जाने से भी जीव की एकरस जो सुरति है, वह "खंड-खंड" कहिए नाना शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध आदि विकारों के मोह में पड़कर छिन्न-भिन्न हो जाती है । इसलिए अपनी सुरति को राम-नाम में लगाकर रखना चाहिए ॥१२३-१२४॥ 
नाम्नोSस्य यावती शक्ति: पापनिर्हरणे हरे: । 
तावत्कर्तुं न शक्नोति पातकं पातकी जन: ॥ 
(भगवन्नाम में जितनी पाप हरने की शक्ति है, उससे अधिक पाप कोई कर ही नहीं सकता ।) 
हरि सन्मुख सम पुण्य को, नाहिं विमुख सम पाप । 
शांति नहिं संतोष सम, तृष्णा सम नहिं ताप ॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें