मंगलवार, 7 अगस्त 2012

= स्मरण का अँग २ =(१२५-७)


॥ दादूराम-सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= स्मरण का अंग - २ =*
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*दादू जबही राम बिसारिये, तब ही झंपै काल ।*
*सिर ऊपर करवत बहै, आइ पड़ै जम जाल ॥१२५॥* 
The moment thou forsakest God, 
the Negative Power pounces upon thee, O Dadu.
a sword hangs over thy head, 
and thou art caught in the snare of Death.
*दादू जब ही राम बिसारिये, तब ही कंध बिनाश ।*
*पग पग परलै पिंड पडै, प्राणीजाइ निराश ॥१२६॥* 
हे जिज्ञासुओं ! जिस समय यह मानव राम के स्मरण को भूल जाता है तब ही यह काम, क्रोध, लोभ, मोह, आदि काल का ग्रास बन जाता है और इसके शरीर रूपी कंधे पर काल का फरसा पड़ता है, जिससे इस मानव का विनाश कहिए, राम-विमुख मृत्यु होती है और मनुष्य देह को यह नष्ट करके, विषय विकार आदिकों में बह जाता है ॥१२५-१२६॥ 
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*दादू जब ही राम बिसारिये, तब ही हाना होइ ।*
*प्राण पिंड सर्वस गया, सुखी न देख्या कोइ ॥१२७॥* 
सतगुरु देव कहते हैं कि हे जिज्ञासुजनों ! जो संसारीजन राम-नाम को भूलकर विषयों में प्रवृत्त रहते हैं, उनका शरीर, प्राण, इन्द्रियाँ और जितना सुकृत कर्म, पुण्य आदि, उन सब का नाश हो जाता है । इसलिए हे जिज्ञासुओं ! मनुष्य-जन्म को प्राप्त करके परमेश्वर के भजन को कभी भी मत भूलो । क्योंकि ईश्वर-विमुख प्राणी को जन्म-जन्मान्तरों में भी सुख प्राप्त होना असम्भव है ॥१२७॥
(क्रमशः)


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