*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
.
*= स्मरण का अंग - २ =*
.
*नाम सम्पूर्णता*
*साहिब जी के नांव में, बिरहा पीड़ पुकार ।*
*ताला बेली रोवणा, दादू है दीदार ॥१२८॥*
सतगुरु उपदेश करते हैं कि हे जिज्ञासुओं ! जिस प्रकार बिरहणी विरह की पीड़ा से, अपने प्रियतम का चिन्तन करती है और जैसे पतिव्रता स्त्री विरह की पीड़ा से अपने प्रियतम कहिए, पति की आराधना करती है, वैसे ही अति प्रीति से प्रभु का नाम-स्मरण करने से परमेश्वर का साक्षात्कार दर्शन होगा ॥१२८॥
.
*विरह जागृति स्मरण विधि*
*साहिब जी के नांव में, भाव भगति विश्वास ।*
*लै समाधि लागा रहै, दादू सांई पास ॥१२९॥*
हे जिज्ञासुओं ! "साहिब जी" कहिए परमेश्वर के नाम में भाव, भक्ति, "विश्वास" कहिए श्रद्धा और "लय" कहिए अभ्यास से तदाकार वृत्ति और इन्द्रियों की विविध वृत्ति रूप प्रवृत्ति तथा सहजावस्था रूप समाधि में जो परमेश्वर का भक्त एकाग्र होकर रहता है, उसके समीप ही कहिए अन्त:करण में ही परमेश्वर निवास करते हैं॥१२९॥
.
*साहिब जी के नांव में, मति बुधि ज्ञान विचार ।*
*प्रेम प्रीति स्नेह सुख, दादू ज्योति अपार ॥१३०॥*
हे जिज्ञासुओं ! परमेश्वर के नाम के स्मरण से निश्चय रूप मति कहिए निश्चयात्मक बुद्धि और नित्य अनित्य के विचार स्वरूप ज्ञान का उदय होता है । जिससे अपार ज्योतिरूप जो परमेश्वर है, उससे प्रभु के प्रति प्रेम, प्रीति, स्नेह कहिए, संलग्नता सुख कहिए परमानन्द का अनुभव होता है ॥१३०॥
(क्रमशः)
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें