*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*= स्मरण का अंग - २ =*
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*साहिब जी के नांव में, सब कुछ भरे भंडार ।*
*नूर तेज अनन्त है, दादू सिरजनहार ॥१३१॥*
हे जिज्ञासुओं ! साहिब जी कहिए जगत के रचने वाले दयालु परमेश्वर का अनन्त कहिए, देशकाल-प्रच्छेद रहित तेजोमय दिव्य स्वरूप हैं । इसलिए ऐसे पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर के नाम के अन्तर्गत ही सम्पूर्ण दैवी-सम्पत्ति और ज्ञान, ध्यान, ऋद्धि-सिद्धि आदि के अनन्त भंडार भरे हैं । उस नाम को हृदय में धारण करो ॥१३१॥
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*जिसमें सब कुछ सो लिया, निरंजन का नांउँ ।*
*दादू हिरदै राखिए, मैं बलिहारी जांउँ ॥१३२॥*
हे जिज्ञासुओं ! जिस निरंजन, निराकार प्रभु के नाम में समस्त माया और माया के कार्य-प्रपंच और त्रिलोकी के सम्पूर्ण सुख विद्यमान हैं, उस परमेश्वर के ऐसे नाम को हृदय में धारण करके जो स्मरण करते हैं, वे भक्त और संत, सब कुछ प्राप्त कर लेते हैं, उनके लिए कोई भी वस्तु अप्राप्य नहीं रहती, क्योंकि यह नाम कल्प-वृक्षवत् है, सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करता है, ऐसे प्रभु का नाम स्मरण करने वाले भक्त एवं संतों की हम बार-बार बलिहारी जाते हैं ॥१३२॥
इति स्मरण का अंग सजीवनी टीका सहित सम्पूर्ण ॥अंग २ ॥ साखी १३२॥
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