बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

= निष्कर्म पतिव्रता का अंग =(८/७९-८१)

॥दादूराम सत्यराम॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= निष्कर्म पतिव्रता का अंग ८ =*
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*पतिव्रत*
*दादू दूजा कुछ नहीं, एक सत्य कर जान ।*
*दादू दूजा क्या करै, जिन एक लिया पहचान ॥८०॥* 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! आभासवान् जगत प्रपंच में किंचित् भी यथार्थता नहीं है, अर्थात् सत्यता नहीं हैं । देवी, देव आदि की नाना साधनाएं सब नश्वर हैं । एक अद्वैत ब्रह्म ही त्रिकाल में अविनाशी है और जब मुक्तजन अखंड एकरस ब्रह्मतत्व का निर्णय कर लेते हैं, तब उनको देवी, देव आदि का भरोसा या भय नहीं रहता है ॥८०॥ 
सुन्दर हरि आराधिये, सब देवन का देव । 
पीव बिन और न मानिये सबै भींत का लेव ॥ 
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*दादू कोई वांछै मुक्ति फल, कोइ अमरापुर वास ।*
*कोई वांछै परमगति, दादू राम मिलन की प्यास ॥८१॥* 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! कोई तो सालोक आदि मुक्ति चाहते हैं, कोई चार पदार्थ मांगते हैं, कोई अमरापुर में वास करना मांगते हैं, कोई परमगति की इच्छा लेकर परमेश्वर का स्मरण करते हैं । परन्तु ब्रह्मऋषि सतगुरु कहते हैं कि "हमारे" कहिए, निष्काम पतिव्रत धर्म को, धारण करने वाले विरहीजन भक्तों के तो केवल राम से मिलने की ही इच्छा है ॥८१॥ 
ज्ञानत: सुलभा मुक्ति: भुक्ति: यज्ञादि पुण्यत: । 
सेयं साधन सहस्त्रे: हरिभक्ति: सुदुर्लभा: ॥ 
छन्द - 
हमकूं तो रैन दिन, शंक मन मांही रहै, 
उनकी तो बातन में ढंग हु न पाइये ।
कबहूँ संदेशा सुनि, अधिक उच्छाव होइ, 
कबहुंक रोइ रोइ आसूं न बहाइये ॥ 
औरन के रस बस होइ रहे प्यारे लाल, 
आवन की कहि कहि हमको भुलाइये ।
"सुन्दर" कहत ताहि काटिये सु कौन भाँति, 
जोइ तरु आपने सु हाथ तैं लगाइये ॥ 
*तुम हरि हिरदै हेत सौं, प्रगटहु परमानन्द ।*
*दादू देखै नैन भर, तब केता होइ आनन्द ॥८२॥* 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! ब्रह्मऋषि अपने को उपलक्षण करके भक्तों की परम प्रेम - प्रीति का प्रतिपादन करते हैं कि हे प्रभु ! हे हरि ! हे परमानन्द स्वरूप ! हमारे अन्तःकरण में आपकी अनन्य भक्ति का भाव उदय करके आप अपने भक्तों को दर्शन दीजिए । ताकि हम अपने स्थूल नेत्रों से आपके दर्शन करके अथवा विवेक वैराग्यरूपी नेत्रों से आपके व्यापक स्वरूप का दर्शन करके कृत कृत्य भाव को प्राप्त होवें ॥८२॥ 
(क्रमशः)

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